Thursday 30 July 2015

एक याद डॉ. कलाम के नाम



एक याद डॉ. कलाम के नाम






राष्ट्रपति बनाने ढूंढना पड़ा था डॉ. कलाम को, तोड़ी राष्ट्रपति भवन की परंपराएं



भारत का राष्ट्रपति बनने के लिए बड़े-बड़े नेता एड़ी-चोटी का जोर लगा देते हैं। राजनीतिक पार्टियों के गुणा-भाग चलते हैं सो अलग। जिस समय डॉ. कलाम को राष्ट्रपति बनाने की चर्चा चली इसकी उन्हें भनक तक नहीं थी। कलाम उस दौरान चेन्नई विश्वविद्यालय के होस्टल के एक छोटे-से कमरे में रह रहे थे। एनडीए सरकार ने फैसला किया कि कलाम राष्ट्रपति पद के उनके उम्मीदवार होंगे। इस बात की सूचना देने के लिए उन्हें ढूंढना पड़ा था। कलाम ने राष्ट्रपति बनने के बाद राष्ट्रपति भवन की कई परंपराओं को बंद करा दिया।


अपनी पुस्तक टर्निंग प्वाइंट्स: ए जर्नी थ्रू चैलेंजेज में उन्होंने इस बात का जिक्र किया है कि वह कैसे भारत के 11वें राष्ट्रपति बनें। उन्होंने लिखा है कि अन्ना विश्वविद्यालय के सुंदर वातावरण में 10 जून 2002 की सुबह और दिनों की तरह ही थी, जहां मैंने दिसम्बर 2001 से काम करना शुरू किया था। विश्वविद्यालय के बड़े और शांत परिसर में वहां के प्रोफेसरों और शोध विद्यार्थियों के साथ काम करते हुए मेरा अच्छा समय बित रहा था।

मेरे क्लास में केवल 60 बच्चों के बैठने की ही व्यवस्था थी, लेकिन उसमें करीब 350 से ज्यादा छात्र बैठा करते थे और कोई ऐसा तरीका भी नहीं था जिससे उनको रोका जा सके। मेरा काम परास्नातक के युवा छात्रों की सोच को जानना और मैंने जो राष्ट्रीय स्तर पर काम किए उनके तजुर्बों को उनसे साझा करना था। मुझे अपने 10 लेक्चर के जरिए उनको यह समझाना था कि समाज को बदलने के लिए तकनीक का प्रयोग कैसे किया जा सकता है।


और क्या लिखा है डॉ. कलाम ने


वह मेरा नौवां व्याख्यान था जिसका शीर्षक 'विजन टू मिशन' था जिसमें कुछ मामलों का अध्ययन भी शामिल था। मैंने जैसे ही अपना व्याख्यान खत्म किया मुझे कई सवालों के जवाब देने पड़े। इसके अलावा मेरे क्लास की अवधि 1 घंटे से बढ़ाकर 2 घंटे करनी पड़ी। इसके बाद मैं और दिनों की तरह अपने कार्यालय में आ गया और शोध छात्रों के साथ बैठकर खाना खाया। हमारा कुक प्रसंगम ने हमें अच्छा खाना खिलाया।

खाने के बाद मैं अपने दूसरे क्लास के लिए गया और फिर शाम को वापस अपने कमरे में आ गया। मैं जब वापस आ रहा था तो उसी समय विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर प्रोफेसर ए कलानिधि पीछे से आए और मेरे साथ चलने लगे। उन्होंने कहा कि आज सुबह से ही मेरे कार्यालय कई फोन आ चुके हैं और कोई है जो आपसे बात करने के लिए काफी उत्सुक है। मैं जैसे ही अपने कमरे में पहुंचा, मैंने पाया कि मेरा फोन बज रहा था। मैंने फोन उठाया तो उधर से आवाज आई, 'प्रधानमंत्री आपसे बात करना चाहते हैं।'

अभी मैं फोन पर प्रधानमंत्री से बात करने का इंतजार कर रहा था इसी दौरान आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडु ने मेरे सेलफोन पर फोन किया। उन्होंने बताया कि प्रधानमंत्री मुझे फोन करने वाले हैं। उन्होंने यह भी कहा, 'कृपया ना मत कहिएगा।' जब मैं नायडु से बात कर रहा था तभी फोन पर प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की आवाज सुनाई दी। उन्होंने पूछा, 'कलाम, आपका शैक्षणिक जीवन कैसा है?' मैंने जवाब दिया, 'बिल्कुल अच्छा।'


वाजपेयी जी ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि हमारे पास आपके लिए एक जरूरी खबर है। मैं अभी एनडीए के सभी राजनीतिक पार्टी के नेताओं की विशेष बैठक से होकर आ रहा हूं। हमने निर्णय लिया है कि देश को राष्ट्रपति के रूप में आपकी जरूरत है। मुझे आपकी सहमति के रूप में केवह 'हां' चाहिए 'ना' नहीं।

हम सर्वसम्मति से करेंगे काम


कमरे में आने के बाद मुझे अभी बैठने का मौका भी नहीं मिला था। मेरे सामने भविष्य की अलग-अलग तस्वीरें दिखाई दे रही थीं। उनमें से एक यह था कि मैं शिक्षकों और छात्रों से घिरा हुआ हूं। मैंने वाजपेयी जी से निर्णय लेने के लिए दो घंटे का समय मांगा और कहा कि मेरे नाम पर राजनीतिक पार्टियों की सहमति भी होनी चाहिए। तो उन्होंने कहा कि पहले आप सहमत होइए, फिर हम सर्वसम्मति पर काम करेंगे।

इन दो घंटों के दरमियान मैं अपने करीबी मित्रों को 30 फोन कॉल किए जिनमें कुछ शैक्षणिक क्षेत्र से, कुछ नागरिक सेवाओं और कुछ राजनीति के क्षेत्र से जुड़े हुए थे। उस वक्त मेरे सामने दो दृश्य उभर रहे थे। पहला यह कि मैं अपने शैक्षणिक जीवन का आनंद ले रहा था और यह मेरा शौक भी था उसे मैं छोड़ना नहीं चाहता था। दूसरा यह कि भारत 2020 विजन को जनता और संसद के सामने रखने का इससे बढ़िया अवसर नहीं मुझे फिर नहीं मिलने वाला था।

दो घंटे के बाद मैंने प्रधानमंत्री जी से बात की और कहा, 'वाजपेयी जी, मैं एक विशेष उद्देश्य के लिए अपनी स्वीकृति दे रहा हूं और मैं सभी पार्टियों का प्रत्याशी बनना चाहूंगा।' उन्होंने कहा, 'ठीक है, हम इस पर काम करेंगे, धन्यवाद।' करीब 15 मिनट में ही यह संदेश पूरे देश में फैल गया और मेरे पास ढेर सारे फोन आने लगे। मेरी सुरक्षा बढ़ा दी गई और ढेर सारे लोग मुझसे मिलने के लिए मेरे कमरे में जमा हो गए।


पहली बार मीडिया से मिले


राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी के रूप में अपना आवेदन करने के बाद 18 जून को जब मैं पहली बार मीडिया से मुखातिब हुआ तो मुझसे कई तरह के सवाल पूछे गए। इसमें गुजरात दंगे और अयोध्या में राम मंदिर बनाने के सवाल भी शामिल थे। राष्ट्रपति के तौर पर मेरा देश के लिए क्या विजन होगा इस पर भी सवाल पूछे गए।

इन सभी मुद्दों लिए मैंने शिक्षा और विकास के रास्ते ही समाधान की बात कही। चेन्नई से जब मैं 10 जुलाई को दिल्ली आया तो यहां तैयारियां पूरे जोर से चल रही थीं। बीजेपी के प्रमोद महाजन मेरे चुनाव एजेंट थे। मेरा फ्लैट बहुत ज्यादा बड़ा तो नहीं था लेकिन सुविधाजनक जरूर था।


मैंने अपने हॉल में ही अपना काम शुरू कर दिया और कुछ समय बाद वहां एक इलेक्ट्रानिक कैंप कार्यालय बन गया। मैंने लोकसभा और राज्यसभा के करीब 800 सांसदों को बतौर राष्ट्रपति देश के प्रति मेरा क्या नजरिए रहेगा उससे अवगत कराया और मुझे वोट करने की अपील की। इसका नतीजा यह हुआ कि मुझे बड़े अंतर से 18 जुलाई को राष्ट्रपति चुन लिया गया।


सामने थी सबसे बड़ी समस्या


इसके बाद मेरे सामने एक नई समस्या खड़ी हो गई। 25 जुलाई को होने वाले शपथ ग्रहण समारोह के दौरान अतिथियों की सूची बनाने में मुझे काफी दिक्कत हुई। संसद के केंद्रीय हॉल में केवल एक हजार लोगों की व्यवस्था थी। इनमें से सभी सांसदों, राजनयिकों और पूर्व राष्ट्रपति केआर नारायणन के अतिथियों की संख्या मिलाने के बाद केवल 100 अतिरिक्त लोगों की जगह वहां बची थी।

हम इसको बढ़ाकर इसकी संख्या 150 तक ले गए। अब इन 150 लोगों में किसको शामिल करूं यह भी एक चुनौती थी। मेरे परिवार के लोगों की संख्या ही 37 थी। इसके बाद मेरे भौतिक के शिक्षक चिन्नादुरई, प्रोफेसर केवी पंडलई और इनके अलावा मेरे दोस्त कई अन्य प्रोफेसर, पत्रकार मित्र, नृत्यांगना मित्र, उद्योगपति और न जाने कितने ही लोग मेहमानों की सूची में शामिल थे।

इसके अलावा इनमें देश के सभी राज्यों से 100 बच्चों को भी शामिल किया गया जिनके लिए अलग से एक पंक्ति बनाई गई। वह दिन बहुत गरम था लेकिन सभी लोग औपचारिक परिधानों में ऐतिहासिक केंद्रीय हॉल में पहुंचे और मेरे शपथ ग्रहण समारोह का हिस्सा बने।


देर से खाते थे खाना, कई प्रथाएं कराई बंद


डॉ. कलाम रात का खाना देरी से खाया करते थे। राष्ट्रपति के प्रोटोकाल के हिसाब से जब तक वह भोजन नहीं कर लें तब तक कोई भोजन नहीं करता था। जब कलाम राष्ट्रपति बने तो उन्होंने इस प्रथा को बंद करवा दिया। उनके लिए महज एक रसोईया रात को देर तक जागता था। वह उन्हें खाना खिलाकर सो जाता था। इसके बाद उसकी दूसरे दिन सुबह की छुट्टी होती थी।


जूते कभी नहीं बंधवाए


उन्होंने राष्ट्रपति भवन में महामहिम के जूते के बंद बांधने की परंपरा भी बंद कराई। जब पहली बार डॉ. कलाम के जूते के बंद बांधने एक कर्मचारी पहुंचा तो वे बेहद नाराज हुए और कहा कि वे आज तक अपने जूते के बंद खुद ही बांधते आए हैं और आगे भी बांधेंगे।

Thursday 23 July 2015

Top GK in Hindi



Top GK in Hindi

1 भारत (India) विश्व का सर्वाधिक पटसन उत्पादक देश है।

2 भारत (India) विश्व का सर्वाधिक अदरक उत्पादक देश है।


3 भारत (India) विश्व का सर्वाधिक केला उत्पादक देश है।

4 भारत (India) विश्व का सर्वाधिक आम उत्पादक देश है।

5 भारत (India) विश्व का सर्वाधिक पपीता उत्पादक देश है।

6 भारत (India) सरकार समर्थित परिवार नियोजन कार्यक्रम आरम्भ करने वाला विश्व का पहला देश है।

7 भारत (India) का पोस्टल नेटवर्क (postal network) संसार का सबसे बड़ा पोस्टल नेटवर्क (postal network) है।

8 भारत (India) संसार का सबसे बड़ा थोरियम भंडार वाला देश है।

9 भारत (India) संसार का सबसे अधिक पशुधन वाला देश है।

10 भारत (India) संसार का सबसे बड़ा स्वर्णाभूषण उपभोक्ता वाला देश है।

11 भारत (India) विश्व का सर्वाधिक दुग्ध उत्पादक देश है।

12 भारत (India) विश्व का सर्वाधिक मोटा अनाज (ज्वार, बाजरा, जौ, कोदो, कुंकनी आदि) उत्पादक देश है।


13 भारत (India) विश्व का सर्वाधिक सैफ्लावर आयल सीड्स उत्पादक देश है।

14 भारत (India) विश्व का दूसरा सर्वाधिक चाय उत्पादक देश है। प्रथम स्थान चीन का है।

15 भारत (India) विश्व का दूसरा सर्वाधिक गन्ना उत्पादक देश है। प्रथम स्थान ब्राजील का है।

16 भारत (India) विश्व का दूसरा सर्वाधिक गेहूँ उत्पादक देश है। प्रथम स्थान चीन का है।

17 भारत (India) विश्व का दूसरा सर्वाधिक प्याज उत्पादक देश है। प्रथम स्थान चीन का है।

18 भारत (India) विश्व का दूसरा सर्वाधिक लहसुन उत्पादक देश है। प्रथम स्थान चीन का है।

19 भारत (India) विश्व का दूसरा सर्वाधिक आलू उत्पादक देश है। प्रथम स्थान चीन का है।

20 भारत (India) विश्व का दूसरा सर्वाधिक धान उत्पादक देश है। प्रथम स्थान चीन का है।

21 भारत (India) विश्व का दूसरा सर्वाधिक बिनौला उत्पादक देश है। प्रथम स्थान चीन का है।

22 भारत (India) विश्व का दूसरा सर्वाधिक सीमेंट उत्पादक देश है। प्रथम स्थान चीन का है।

23 भारत (India) विश्व का दूसरा सर्वाधिक कृषि भूमि वाला देश है। प्रथम स्थान संयुक्त राज्य अमेरिका का है।

विश्व की 500 सबसे बड़ी कंपनियों में सात भारतीय



विश्व की 500 सबसे बड़ी कंपनियों में सात भारतीय

रिलायंस इंडस्ट्रीज और टाटा मोटर्स समेत सात भारतीय कंपनियां विश्व की 500 सबसे बड़ी कंपनियों में हैं। फाच्र्यून पत्रिका की इस सूची में शीर्ष पर वालमार्ट है। 2015 की फाच्र्यून ग्लोबल 500 सूची में इंडियन आयल 119वें स्थान पर है। इसकी वार्षिक आय करीब 74 अरब डॉलर है। 62 अरब डॉलर की आय वाली रिलायंस इंडस्ट्रीज (158वें), 42 अरब डॉलर के साथ टाटा मोटर्स (254वें):, 42 अरब डॉलर के साथ भारतीय स्टेट बैंक (260वें), 40 अरब डॉलर के साथ भारत पेट्रोलियम (280वें), 35 अरब
डॉलर की आय के साथ हिंदुस्तान पेट्रोलियम :327वें: और 26 अरब डॉलर की आय के साथ ओएनजीसी (449वे) स्थान पर है। विश्व की 500 प्रमुख कंपनियों की सम्मिलित आय 2014 में 31200 अरब डॅालर रही और मुनाफा।,700 अरब डॅालररहा। इस साल की 500 सर्वश्रेष्ठ कंपनियों में वैश्विक स्तर पर 6.5 करोड़ कर्मचारी काम करते हैं और 36 देशों में इनका परिचालन है।

Wednesday 1 July 2015

डिजिटल इंडिया की क्या हैं

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सरकार का पहला लक्ष्य है ब्रॉडबैंड हाइवे. इसके तहत देश के आख़िरी घर तक ब्रॉडबैंड के ज़रिए इंटरनेट पहुंचाने का प्रयास किया जाएगा.
लेकिन इसमें सबसे बड़ी बाधा है कि नेशनल ऑप्टिक फ़ाइबर नेटवर्क का प्रोग्राम, जो तीन-चार साल पीछे चल रहा है. सरकार को ये समझना होगा कि जब आप गांव-गांव तार बिछाने जाएंगे तो आप उन लोगों को ये काम नहीं सौंप सकते जो पिछले 50 साल से कुछ और बिछा रहे हैं. आपको वो लोग लगाने होंगे जो ऑप्टिक फ़ाइबर नेटवर्क की तासीर समझते हैं.
सरकार का दूसरा लक्ष्य है सबके पास फोन की उपलब्धता, जिसके लिए ज़रूरी है कि लोगों के पास फ़ोन खरीदने की क्षमता हो. ख्याल अच्छा है लेकिन सरकार को ये सोचना होगा कि क्या सबके पास फोन खरीदने की क्षमता आ गई है. या फिर सरकार अगर ये सोच रही है कि वो खुद सस्ते फोन बनाएगी तो इसके लिए तकनीक और तैयारी कहां है?
तीसरा स्तंभ है पब्लिक इंटरनेट एक्सेस प्रोग्राम.
हर किसी के लिए इंटरनेट हो यह अच्छी बात है. इसके लिए पीसीओ के तर्ज पर पब्लिक इंटरनेट एक्सेस प्वाइंट बनाए जा सकते हैं. ये पीसीओ आसानी से समस्या हल कर सकते हैं, लेकिन हर पंचायत के स्तर पर इसको लगाना और चलाना कोई आसान काम नहीं है. इसी के चलते पिछले कई साल से योजना लंबित है.
चौथा है ई-गवर्नेंस. यानी सरकारी दफ्तरों को डिजीटल बनाना और सेवाओं को इंटरनेट से जोड़ने का.
इसे लागू करने का पिछला अनुभव बताता है कि दफ्तर डिजीटल होने के बाद भी उनमें काम करने वाले लोग डिजिटल नहीं हो पा रहे हैं. इसका तोड़ निकालने का कोई नया तरीका ढूंढा है किया सरकार ने?

ई-क्रांति

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ये ई-गवर्नेंस से जुड़ा मसला है और सरकार की मंशा है कि इंटरनेट के ज़रिए विकास गांल-गांव तक पहुंचे. मुझे लगता है इस पर सबसे ज़्यादा ध्यान देने की ज़रूरत है.
ई-क्रांति के लिए हमारा दिमाग, हमारी सोच, हमारा प्रशिक्षण और उपकरण सबकुछ डिजिटल होना ज़रूरी है.
अगर हमने सरकार के ढांचे को इंटरनेट से नहीं जोड़ा तो फिर इसके तहत डिलीवरी कैसे करेंगे?
और अगर कर भी दी, तो सही में इसका फायदा लोगों तक नहीं पहुंचता है. इसमें बड़ी धांधली होती है.
सरकार ने अपने लिए छठा लक्ष्य रखा है इंफ़ोर्मेशन फ़ॉर ऑल यानी सभी को जानकारियाँ मुहैया कराई जाएंगी.
लेकिन सवाल उठता है कि एक्सेस टू इंफ़ॉर्मेशन के अभाव में यह कैसे संभव है?
इसके लिए ज़रूरी है अच्छा एक्सेस इंफ्रास्ट्रक्चर होना ताकि लोग आसानी से जानकारियां पा सकें. साथ ही इसके तहत सिर्फ सूचनाएं पहुंचाना सरकार का लक्ष्य है या ज़मीनी सूचनाएं इक्ठठी करना भी है. अगर सिर्फ पहुंचाना मकसद है तो यह गैर-लोकतांत्रिक है.
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सातवां लक्ष्य है इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादन का.
इसके तहत उद्देश्य इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों के लिए कल-पुर्जों के आयात को शून्य करना है.
यह कभी भी संभव नहीं है क्योंकि पूरी दुनिया चाहती है व्यापार करना.
जहां तक इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादों के उत्पादन का सवाल है तो अभी तक हम इस मामले में शहरों तक ही सीमित हैं और गांवों तक जा ही नहीं रहे हैं.
इसमें नीति और नियमितता की चुनौतियां बहुत ज्यादा है.

रूरल बीपीओ

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आठवां है आईटी फ़ॉर जॉब्स. सरकार अगर आईटी क्षेत्र के ज़रिए नौकरियां पैदा करना चाहती हैं तो मेरे ख्याल से हर ब्लॉक स्तर पर हमें रूरल बीपीओ खोल देना चाहिए.
रुरल बीपीओ प्रोग्राम से रोज़गार के अवसर भी बनेंगे, डिजिटाइजेशन और ई-गवर्नेंस भी होगा. ये काम भी पिछले कई साल से लंबित है.
डि़जीटल क्रांति के लिए नौवां स्तंभ है अर्ली हार्वेस्ट प्रोग्राम. इस लक्ष्य को मैं बिलकुल नहीं समझ पाया हूं. मोटे तौर इसका संबंध दफ्तरों और स्कूल-कॉलेजों में विद्यार्थियों और शिक्षकों की हाज़िरी से है, लेकिन सरकार इसके ज़रिए क्या करना चाहती है ये जनना ज़रूरी है.
लेकिन अहम बात यह है कि क्या हम इन नौ उद्देश्यों को पुराने दिमाग से चला रहे हैं. अगर वही ईंट-पत्थर तोड़ने वाले राज-मिस्त्री ज़मीनी स्तर पर इसके लिए काम करेंगें तो क्या काम हो पाएगा?
और अगर हम इसे नई सोच के तहत करना चाहते हैं तो इसके लिए हमें पूरी तरह से नया रवैया अपनाना पड़ेगा.
गांव में डिजीटल तकनीक को लेकर मैंने जो काम किया है उसके आधार पर कह सकता हूं कि अगर सब-कुछ सटीक उस तरह हो जाए जैसा कागज़ों पर दिखता है तब भारतीय परिस्थितियों में इन लक्ष्यों को पूरा होने में कम से कम दस साल लगेंगे.