Wednesday, 23 December 2015

Oxford Word of the Year 2015 ('वर्ड ऑफ द ईयर') 2015

Oxford Word of the Year (10 साल के ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी के 'वर्ड ऑफ द ईयर')


हंसते-हंसते आंसू निकाल देने वाली हालत को बयां करते ईमोजी (पिटोग्राफ) को ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी ने 'वर्ड ऑफ द ईयर' चुना है. ऐसा पहली बार हुआ है, जब किसी पिटोग्राफ को डिक्शनरी में शामिल किया गया है. जानें अब तक किन शब्‍दों को पहनाया गया है ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी वर्ड ऑफ द ईयर का ताज:







Year    Oxford Word of the Year


2015     Face With Tears of Joy, part of emoji


2014 Vape (ई-सिगरेट पीने के तरीके के लिए इस शब्द का प्रयोग होता है)


2013 selfie (खुद की फोटो लेना)


2012 omnishambles (अव्‍यवस्‍था)


2011 squeezed middle (मंदी के दौर में जब आमदनी में बढ़ोतरी न हो और महंगाई के चलते मिडल क्लास को अपने खर्चों में कटौती करनी पड़ रही हो तो स्थि‍त‍ि को squeezed middle का नाम दिया गया.)


2010 refudiate (मुकर जाना, खंडन करना, नकारना, त्याग कर देना)


2009 unfriend (सोशल मीडिया फेसबुक पर किसी फ्रेंड को ब्‍लॉक करने के लिए इसका प्रयोग किया जाता


2008 hypermiling (ईंधन की कम खपत के साथ लंबी दूरी तक वाहन चलाने का तरीका)


2007 locavore (ऐसा व्‍यक्ति जो स्‍थानीय आहार को खाना पसंद करे.)


2006 carbon-neutral (यह टर्म संगठनों, व्यक्ति‍यों और कंपनियों की उस प्रक्र‍िया के लिए प्रयुक्त की जाती है जो वातावरण से कम से कम उतनी कार्बन डाइऑक्साइड कम करने की कोशि‍श कर रहे हैं जितनी उन्होंने छोड़ी है.)


2005 podcast (ऑनलाइन म्‍यूजिक फाइल डाउनलोड करने के लिए यह टर्म यूज होती है.)


2004 chav (इसे ब्रिटेन में डिजाइनर कपड़े पहने हुए व्‍‍यक्ति के लिए प्रयोग किया जाता है.)

किन खि‍लाड़ि‍यों ने देश के साथ अपने राज्य का भी नाम रोशन किया


Online GK Teacher's photo.

किन खि‍लाड़ि‍यों ने देश के साथ अपने राज्य का भी नाम रोशन किया

Tuesday, 1 December 2015

Story of Android in Hindi



what is climate change (जलवायु परिवर्तन है क्या?)


जलवायु परिवर्तन है क्या?

पृथ्वी का औसत तापमान अभी लगभग 15 डिग्री सेल्सियस है, हालाँकि भूगर्भीय प्रमाण बताते हैं कि पूर्व में ये बहुत अधिक या कम रहा है. लेकिन अब पिछले कुछ वर्षों में जलवायु में अचानक तेज़ी से बदलाव हो रहा है.

मौसम की अपनी खासियत होती है, लेकिन अब इसका ढंग बदल रहा है. गर्मियां लंबी होती जा रही हैं, और सर्दियां छोटी. पूरी दुनिया में ऐसा हो रहा है. यही है जलवायु परिवर्तन.

अब सवाल उठता है कि आखिर ऐसा हो क्यों रहा है. जवाब भी किसी से छिपा नहीं है और अक्सर लोगों की जुबां पर होता है ‘ग्रीन हाउस इफेक्ट’.
क्या है ग्रीन हाउस इफेक्ट?

पृथ्वी का वातावरण जिस तरह से सूर्य की कुछ ऊर्जा को ग्रहण करता है, उसे ग्रीन हाउस इफेक्ट कहते हैं. पृथ्वी के चारों ओर ग्रीन हाउस गैसों की एक परत होती है. इन गैसों में कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड शामिल हैं.

ये परत सूर्य की अधिकतर ऊर्जा को सोख लेती है और फिर इसे पृथ्वी की चारों दिशाओं में पहुँचाती है.

जो ऊर्जा पृथ्वी की सतह तक पहुँचती है, उसके कारण पृथ्वी की सतह गर्म रहती है. अगर ये सतह नहीं होती तो धरती 30 डिग्री सेल्सियस ज़्यादा ठंडी होती. मतलब साफ है कि अगर ग्रीनहाउस गैसें नहीं होतीं तो पृथ्वी पर जीवन नहीं होता.

वैज्ञानिकों का मानना है कि हम लोग उद्योगों और कृषि के जरिए जो गैसे वातावरण में छोड़ रहे हैं (जिसे वैज्ञानिक भाषा में उत्सर्जन कहते हैं), उससे ग्रीन हाउस गैसों की परत मोटी होती जा रही है.

ये परत अधिक ऊर्जा सोख रही है और धरती का तापमान बढ़ा रही है. इसे आमतौर पर ग्लोबल वार्मिंग या जलवायु परिवर्तन कहा जाता है.Image copyrightEric Guth

इनमें सबसे ख़तरनाक है कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा का बढ़ना. कार्बन डाइऑक्साइड तब बनती है जब हम ईंधन जलाते हैं. मसलन- कोयला.

जंगलों की कटाई ने इस समस्या को और बढ़ाया है. जो कार्बन डाइऑक्साइड पेड-पौधे सोखते थे, वो भी वातावरण में घुल रही है. मानवीय गतिविधियों से दूसरी ग्रीनहाउस गैसों मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड का उत्सर्जन भी बढ़ा है, लेकिन कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में इनकी मात्रा बहुत कम है.

1750 में औद्योगिक क्रांति के बाद कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर 30 प्रतिशत से अधिक बढ़ा है. मीथेन का स्तर 140 प्रतिशत से अधिक बढ़ा है. वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर आठ लाख वर्षों के सर्वोच्च स्तर पर है.
तापमान बढ़ने के सबूत क्या हैं?Image copyrightReuters

उन्नीसवीं सदी के तापमान के आंकड़े बताते हैं कि पिछले 100 साल में पृथ्वी का औसत तापमान 0.8 डिग्री सेल्सियस बढ़ा. इस तापमान का 0.6 डिग्री सेल्सियस तो पिछले तीन दशकों में ही बढ़ा है.

उपग्रह से प्राप्त आंकड़े बताते हैं कि पिछले कुछ दशकों में समुद्र के जल स्तर में सालाना 3 मिलीमीटर की बढ़ोतरी हुई है. सालाना 4 प्रतिशत की रफ़्तार से ग्लेशियर पिघल रहे हैं.

जलवायु परिवर्तन का असर मनुष्यों के साथ साथ वनस्पतियों और जीव जंतुओं पर देखने को मिल सकता है. पेड़ पौधों पर फूल और फल समय से पहले लग सकते हैं और जानवर अपने क्षेत्रों से पलायन कर दूसरी जगह जा सकते हैं.
भविष्य में कितना बढ़ेगा तापमानImage copyrightThinkstock

2013 में जलवायु परिवर्तन पर एक अंतरराष्ट्रीय समिति ने कंप्यूटर मॉडलिंग के आधार पर संभावित हालात का पूर्वानुमान लगाया था.

उनमें से एक अनुमान सबसे अहम था कि वर्ष 1850 की तुलना में 21वीं सदी के अंत तक पृथ्वी का तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाएगा.

यहाँ तक कि अगर हम ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में अभी भारी कटौती कर भी लें तब भी जलवायु परिवर्तन के प्रभाव दिखते रहेंगे, खासकर हिमखंडों और ग्लेशियर्स पर.
जलवायु परिवर्तन का हम पर क्या असर?

असल में कितना असर होगा इस बारे में निश्चित तौर पर कुछ कहना तो मुश्किल है. लेकिन इससे पीने के पानी की कमी हो सकती है, खाद्यान्न उत्पादन में कमी आ सकती है, बाढ़, तूफ़ान, सूखा और गर्म हवाएं चलने की घटनाएं बढ़ सकती हैं.

जलवायु परिवर्तन का सबसे ज़्यादा असर ग़रीब मुल्कों पर पड़ सकता है. इंसानों और जीव जंतुओं कि ज़िंदगी पर असर पड़ेगा. ख़ास तरह के मौसम में रहने वाले पेड़ और जीव-जंतुओं के विलुप्त होने का ख़तरा बढ़ जाएगा.

Wednesday, 25 November 2015

26 November Indian constitution day (26 नवंबर को संविधान दिवस)



सरकार ने 26 नवंबर को संविधान दिवस घोषित किया है. आज हमारा संविधान 65 साल का हो गया है. जानिए इससे जुड़ी खास बातें:

1. देश का सर्वोच्‍च कानून हमारा संविधान 26 नवंबर, 1949 में अंगीकार किया गया था.

2. संविधान सभा को इसे तैयार करने में दो साल, 11 महीने और 17 दिन का समय लगा.


3. संविधान सभा पर अनुमानित खर्च 1 करोड़ रुपये आया था.

4. मसौदा लिखने वाली समिति ने संविधान हिंदी, अंग्रेजी में हाथ से लिखकर कैलिग्राफ किया था और इसमें कोई टाइपिंग या प्रिंटिंग शामिल नहीं थी.

5. संविधान सभा के सदस्य भारत के राज्यों की सभाओं के निर्वाचित सदस्यों के द्वारा चुने गए थे. जवाहरलाल नेहरू, डॉ भीमराव अम्बेडकर, डॉ राजेन्द्र प्रसाद, सरदार वल्लभ भाई पटेल, मौलाना अबुल कलाम आजाद आदि इस सभा के प्रमुख सदस्य थे.

6. 11 दिसंबर 1946 को संविधान सभा की बैठक में डॉ. राजेंद्र प्रसाद को स्थायी अध्यक्ष चुना गया, जो अंत तक इस पद पर बने रहें.

7. इसमें अब 465 अनुच्छेद, तथा 12 अनुसूचियां हैं और ये 22 भागों में विभाजित है. इसके निर्माण के समय मूल संविधान में 395 अनुच्छेद, जो 22 भागों में विभाजित थे इसमें केवल 8 अनुसूचियां थीं.

8. संविधान की धारा 74 (1) में यह व्‍यवस्‍था की गई है कि राष्‍ट्रपति की सहायता को मंत्रिपरिषद् होगी जिसका प्रमुख पीएम होगा.

9. हमारा संविधान विश्‍व का सबसे लंबा लिखित संविधान है.

10. आज से ठीक 66 वर्ष पहले भारतीय संविधान तैयार करने एवं स्वीकारने के बाद से इसमें पूरे 100 संशोधन किए जा चुके हैं.

Tuesday, 6 October 2015

The Nobel Prize in Physics 2015



The Nobel Prize in Physics 2015

Takaaki Kajita, Arthur B. McDonald

Takaaki Kajita
Super-Kamiokande Collaboration
University of Tokyo, Kashiwa, Japan


and

Arthur B. McDonald
Sudbury Neutrino Observatory Collaboration
Queen’s University, Kingston, Canada

“for the discovery of neutrino oscillations, which shows that neutrinos have mass”

Monday, 5 October 2015

Nobel prize in medicine 2015 चिकित्सा के क्षेत्र में साल 2015 का नोबेल पुरस्कार

Nobel prize in medicine चिकित्सा के क्षेत्र में साल 2015 का नोबेल पुरस्कार
चिकित्सा के क्षेत्र में साल 2015 का नोबेल पुरस्कार आयरलैंड में जन्मे विलियम कैंपबेल, चीन की तू योउयोउ व जापान के संतोषी ओम्यूरा ने जीता है. समाचार एजेंसी सिन्हुआ की एक रपट के मुताबिक, नोबेल एसेंबली ने स्वीडन के कैरोलिंस्का इंस्टीट्यूट में सोमवार को यह घोषणा की.
तू योउयोउ:
30 दिसंबर, 1930 को जन्मी चीनी चिकित्सा विज्ञानी तथा शिक्षक तू योउयोउ को सबसे ज्‍यादा मलेरिया के खिलाफ कारगर दवा की खोज के लिए जाना जाता है. उन्‍हें अपने कार्यों के लिए 2011 का Lasker Award से नवाजा जा चुका है.
संतोषी ओम्यूरा:
जापानी बायोकैमिस्ट संतोषी ओम्यूरा का जन्म 12 जुलाई, 1935 को हुआ था. उन्हें दवाओं के क्षेत्र में कई माइक्रोऑर्गेनिज्‍म विकसित करने के लिए जाना जाता है. उन्‍हें यह पुरस्‍कार संक्रमणों के खिलाफ नई उपचार पद्धति विकसित करने के लिए मिला है.
विलियम कैंपबेल:
1930 में जन्‍मी आयरिश बायोकैमिस्ट विलियम सी. कैम्पबेल, ने ग्रेजुएशन डबलिन (आयरलैंड) के ट्रिनिटी कॉलेज और पीएचडी यूनिवर्सिटी ऑफ विस्कॉन्सिन से पूरी की. वर्ष 1957 से 1990 तक वह मर्क इंस्टीट्यूट ऑफ थैराप्यूटिक रिसर्च से जुड़े रहे.

Thursday, 24 September 2015

सिलिकॉन वैली का टॉप टैलेंट भारतीय ही क्यों?


सिलिकॉन वैली का टॉप टैलेंट भारतीय ही क्यों?

इस दौरान वे सिलिकॉन वैली में काम करने वाले भारतीय पेशेवरों से मिलेंगे और उन्हें संबोधित भी करेंगे. दरअसल बीते कुछ सालों में अमरीका की सूचना और तकनीक की दुनिया में भारतीयों का दबदबा काफी बढ़ा है.

इंटरनेट की दुनिया की सबसे बड़ी कंपनियों में एक गूगल के सीईओ सुंदर पिचाई भारतीय मूल हैं. पहली बार कोई भारतीय गूगल में शीर्ष पद तक पहुंचा है लेकिन हकीकत ये भी है कि गूगल का शुरुआत से ही भारत से नाता रहा है.

1998 में स्टैंफर्ड यूनिवर्सिटी में सर्जेइ ब्रिन और लैरी पेज ने अपने शिक्षक टैरी विनोग्रैड और राजीव मोटवानी के साथ गूगल की परिकल्पना विकसित की थी. भारत के मोटवानी को गूगल का सबसे पहला कर्मचारी माना जाता है.
शिखर पर सुंदर पिचाई

मोटवानी और पिचाई दोनों इंडियन इंस्टीच्यूट ऑफ़ टेक्नालॉजी (आईआईटी) से निकले और गूगल में शीर्ष स्तर की जिम्मेदारियों को बखूबी निभाया है.

वैसे ये बात केवल सुंदर पिचाई और मोटवानी तक ही सीमित नहीं है, बल्कि अमरीका की तकनीकी दुनिया में भारतीयों की मौजूदगी लगातार बढ़ रही है.

अमरीका में लगभग एक तिहाई स्टार्ट अप भारतीय लाँच कर रहे हैं. इतने स्टार्टअप वहां रह रहे दूसरे सात ग़ैर-अमरीकी समुदाय मिलकर भी लाँच नहीं कर पा रहे हैं.

2011 के आंकड़ों के मुताबिक, अमरीका में भारतीय समुदाय सबसे ज़्यादा औसत सालाना आमदनी वाला समूह है. अमरीका में रह रहे भारतीय साल में 86,135 डॉलर कमाते हैं जबकि अमरीका की औसत आय 51,914 डॉलर सालाना है.

हालांकि भारतीय समुदाय को यहां तक पहुंचने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा है. अब पिचाई का ही उदाहरण देखिए.

चेन्नई के एक इंजीनियर के बेटे पिचाई जब अमरीका गए तो हवाई टिकट उनके पिता के सालाना वेतन के बराबर था. पैसे की तंगी की वजह से वे छह महीने तक अपनी होने वाली पत्नी को फ़ोन नहीं कर पाए थे.

2004 में गूगल से जुड़ने से पहले पिचाई मैनेजमेंट कंसल्टेंट के तौर पर मैकेंजी और माइक्रोप्रोसेसर सप्लायर एप्लायड मैटेरियल्स के साथ कम कर चुके थे. गूगल के सीईओ बनने से पहले पिचाई ने वेब ब्राउज़र गूगल क्रोम की स्थापना की थी.

दरअसल पिचाई जैसे भारतीय लोगों के बढ़ते दबदबे की सबसे बड़ी वजह यही है कि अमरीकी सिलिकॉन वैली में शीर्ष स्तर पर जो कार्य-संस्कृति है उसमें बड़ा बदलाव आया है.
भारतीयों का दबदबा

पहले के सीईओ काफी इगो वाले, कर्मचारियों के साथ सख्ती से पेश आने वाले और काफी हद तक निर्णायक फ़ैसले लेने वाले होते थे जो गुणवत्ता सुधारने के लिए, प्रतिस्पर्धी माहौल बनाने के लिए और कर्मचारियों की उत्पादकता बढ़ाने के लिए जान-बूझकर टकराव का रास्ता अपनाते थे.

अब प्रबंधन का अंदाज बदला है और टकराव के बदले, उसे नजरअंदाज़ करके बेहतर काम करने का रास्ता अपनाया जा रहा है. इस संस्कृति में भारतीय सीईओ एकदम फ़िट साबित हो रहे हैं.

यही वजह है कि माइक्रोसॉफ़्ट ने सत्या नडेला को अपना सीईओ बनाया है. स्टीव बॉमर के माइक्रोसॉफ़्ट छोड़ने का बाद उन्हें सीईओ बनाया गया.

इसके अलावा जापान के टेलीकॉम मल्टीनेशनल सॉफ़्टबैंक ने गूगल के निकेश अरोड़ा को अपना प्रेसीडेंट बनाया है.

एडोब को शांतानु नारायण चला रहे हैं.

आईटी की विशालकाय कंसल्टेंसी कंपनी कॉग्नीजेंट को फ्रांसिस्को डिसूज़ा लीड कर रहे हैं. कंप्यूटर मेमरी की बड़ी कंपनी सैनडिस्क के मुखिया संजय मेहरोत्रा भी भारतीय ही हैं.
स्टार्टअप्स में अव्वल

केवल टेक्नॉलाजी की बड़ी कंपनियों पर ही भारतीयों का दबदबा नहीं हैं. बल्कि शराब का कारोबार करने वाली सबसे बड़ी कंपनी डियाजियो के सीईओ इवान मेनेजेस भी भारतीय मूल के हैं.
मास्टरकार्ड के बॉस अजय बंगा भी भारतीय हैं. पेप्सी की सीईओ इंद्रा नूयी भी टॉप तक पहुंचने वाली भारतीयों में शामिल हैं.

सिलिकॉन वैली में भारतीय वर्क फोर्स की आबादी कुल मानव संसाधनों में 6 फ़ीसदी है लेकिन दूसरी ओर सिलिकॉन वैली के 15 फ़ीसदी स्टार्टअप्स के संस्थापक भारतीय हैं.

अमरीका के सिंगुलरिटी, स्टैनफोर्ड और ड्यूक यूनिवर्सिटी में पढ़ाने वाले प्रोफेसर विवेक वाधवा के एक अध्ययन के मुताबिक ब्रिटेन, चीन, ताइवान, जापान मिलकर जितने स्टार्ट अप शुरू करते हैं ये उससे भी अधिक है. इस अध्ययन के मुताबिक अमरीका की एक-तिहाई स्टार्टअप्स भारतीय लोगों ने शुरू किए हैं.

ऐसे में सवाल ये है कि भारतीय मूल के लोग अमरीका में इतने कामयाब क्यों हो रहे हैं?
कामयाबी की वजह

इसकी एक बड़ी वजह भारतीयों का अंग्रेजी ज्ञान है. ब्रिटिश उपनिवेशवाद के चलते भारत में उच्च शिक्षा अंग्रेजी माध्यम में ही उपलब्ध हैं, ऐसे भारतीय पेशेवरों को अलग से अंग्रेजी सीखने में मेहनत नहीं करनी होती है.

सिलिकॉन वैली में नेटवर्किंग संस्था चला रहे द इंडस इंटरप्रेन्योर्स के अध्यक्ष वेंकटेश शुक्ला इसकी एक दूसरी वजह भी मानते हैं.

वे कहते हैं, "इनमें से ज़्यादातर लोग भारत से तब आए थे जब वहां सीमित अवसर उपलब्ध थे. अमरीकी की वीज़ा नीतियों के कारण सिर्फ़ बेहतरीन प्रतिभाएं ही यहां आ सकीं. तो यहां भारत के सबसे प्रतिभाशाली लोग मौजूद हैं."

इसके अलावा कुछ और पहलू हैं जिसके चलते भारतीय अच्छा कर रहे हैं. इन्हीं पहलुओं में विविधता भी शामिल है.

वेंकटेश शुक्ला कहते हैं, "अगर आप भारत में पले-बढ़े हों तो विविधरंगी समाज आपके लिए कोई नई बात नहीं होती. सिलिकॉन वैली में ज़्यादा राजस्व और बेहतर उत्पाद की बात होती है, आप कैसा दिखते हैं और क्या बोलते हैं, इसका कोई मतलब नहीं होता."

कल्चरल डीएनए के लेखक गुरनेक बैंस कहते हैं, "ग्लोबलाइज़ेशन के मनोविज्ञान ने विविधता की समझ को भी बेहतर बनाया है. भारतीय विविध उत्पाद, विविध वास्तविकता और विविधरंगी नज़रिए को समझते हैं."

बैंस कहते हैं, "इसके चलते भारतीय तेज़ी से बदलती आईटी की दुनिया की चुनौतियों को संभालने में सक्षम हैं."

बेंस के मुताबिक अमरीकी सोचने का काम ज़्यादा करते हैं लेकिन योजना को अमल में लाने में भारतीय काफ़ी आगे हैं.

बैंस के फर्म वायएससी के 200 से ज़्यादा सीईओ के आकलन और विश्लेषण के दौरान ये बात भी सामने आई कि भारतीय कुछ हासिल करने के लिए प्रतिबद्ध होते हैं और उनमें बौद्धिकता का एक स्तर भी होता है.
ख़ामियां भी हैं मगर...

लेकिन इसका मतलब यह नहीं है हर कोई परफैक्ट ही होता है. तमाम गुणों के बावजूद भारतीयों में एक बड़ी खामी भी है. बैंस के अध्ययन के मुताबिक, "भारतीय टीम वर्क में सबसे कमज़ोर हैं." इस पहलू में अमरीकी और यूरोपीय सबसे बेहतर हैं.

हालांकि जो भारतीय लंबे समय से बाहर रहे हैं वो टीम वर्क के गुर भी सीख रहे हैं.

विवेक वाधवा कहते हैं, "भारत के बच्चे माइक्रोसॉफ्ट और गूगल का सबसे ज़्यादा इस्तेमाल करते हैं और वे इन कंपनियों के भारतीय सीईओ को भी देख रहे हैं. यह काफी प्रेरक है."

वाधवा के मुताबिक भारतीय पेशेवरों को अब अपनी क्षमता दिखाने के लिए अमरीका जाने की बाध्यता भी नहीं है क्योंकि भारत अब अमरीका और चीन के बाद दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है.

वाधवा कहते हैं, "अगले तीन से पांच साल के बीच भारत में करीब 50 करोड़ की आबादी स्मार्टफ़ोन का इस्तेमाल करने लगेगी. टेक क्रांति यहां दिखाई देगी. भारत से कई अरब डॉलर वाली कंपनियां निकलेंगी. अब अवसर भारत में मौजूद हैं."

Wednesday, 23 September 2015

डेंगू विषाणु कैसे फैलता है



डेंगू विषाणु कैसे फैलता है

वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि डेंगू विषाणु कैसे फैलता है और वे यह समझने के बहुत करीब हैं कि पहला डेंगू संक्रमण अक्सर हल्का क्यों होता है जबकि दूसरी बार संक्रमण प्राणघातक होता है।

अनुसंधानकर्ताओं का मानना है कि संक्रमण के जवाब में हमारे शरीर में प्रतिरक्षी पैदा होते हैं, लेकिन इस दौरान डेंगू के संक्रमण से जुड़े कुछ नयी तरह के विषाणु भी चुपचाप कोशिकाओं में प्रवेश कर जाते हैं, जिनसे हमारी प्रतिरोधक प्रणाली अनभिज्ञ बनी रहती है। बाद में मौका मिलने पर यह विषाणु सक्रिय हो जाते हैं और चूंकि प्रतिरोधक प्रणाली इनसे अनजान होती है इसलिए शरीर में इनके प्रतिरक्षी नहीं बन पाते और बीमारी प्राणघातक हो जाती है।


यहां यह महत्वपूर्ण है कि जब हम संक्रमित होते हैं तो हमारी प्रतिरोधक प्रणाली प्रतिरक्षी को संक्रमण की प्रकृति की पहचान करने के लिए भेजती है और प्रतिरक्षी संक्रमण की पहचान करने के बाद ही उसके प्रतिरोध का इंतजाम करते हैं। डेंगू के संक्रमण के विषाणुओं की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है और यह एक बार प्रतिरोधक प्रणाली के घेरे में आने के बाद एक दूसरे रूप में छिपकर कोशिकाओं तक पहुंचता है और प्रतिरोधक प्रणाली को खबर होने तक मरीज को प्राणघातक नुकसान पहुंचा देता है।

डेंगू के बारे में एक असामान्य पहलू यह है कि कुछ मामलों में जब कोई व्यक्ति दूसरी बार संक्रमित होता है तो संक्रमण से प्रतिरक्षा के बजाय बीमारी ज्यादा गंभीर हो सकती है। हालत यह है कि डेंगू एंटीजेनिक काटरेग्राफी कंसोर्टियम के अनुसंधानकर्ताओं ने डेंगू के जो 148 नमूने एकत्र किए, उनमें 47 तरह के विषाणु पाए गए। कहने को चिकित्सा जगत में डेंगू के चार प्रकार प्रचलन में हैं और इन चार प्रकारों में भी प्रत्येक डेंगू के विषाणु में काफी विभिन्नताएं हैं। इससे पता चलता है कि जब कोई व्यक्ति एक तरह के डेंगू से पीड़ित होता है तो उसी तरह के दूसरे विषाणु के खिलाफ प्रतिरोध में असमर्थ होता है। यह अध्ययन जरनल साईंस में प्रकाशित हुआ है।

Tuesday, 1 September 2015

World Hindi Conference Special (हिन्दी भारत की मातृभाषा है। आज हम आजाद हैं )

10th World Hindi Conference Bhopal (M.P.) 10,11,12 September 2015

हिन्दी भारत की मातृभाषा है। आज हम आजाद हैं लेकिन फिर भी हिंदी को आजाद भारत में वह स्थान नहीं मिला जो इसे मिलना चाहिए था। विश्व हिंदी सम्मेलन है इस मौके पर आइए एक लहर पैदा करें अपनी मातृभाषा को सम्मान दिलाने के लिए.!

14 सितम्बर 1949 को संविधान सभा ने निर्णय लिया कि हिंदी भारत की राजभाषा होगी, तभी से प्रत्येक वर्ष 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है। हिंदी भारत में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। लेकिन आज के दौर में हिंदी अपना अस्तित्व खोती जा रही है। आइए हम सब ये प्रण लें कि हम हिंदी बोलने में संकोच नहीं करेंगे और गर्व से हिंदी भाषा का उपयोग करेंगे..।



हिन्दी की विशेषताएँ एवं शक्ति



हिंदी भाषा के उज्ज्वल स्वरूप का ज्ञान कराने के लिए यह आवश्यक है कि उसकी गुणवत्ता, क्षमता, शिल्प-कौशल और सौंदर्य का सही-सही आकलन किया जाए। यदि ऐसा किया जा सके तो सहज ही सब की समझ में यह आ जाएगा कि -

1 संसार की उन्नत भाषाओं में हिंदी सबसे अधिक व्यवस्थित भाषा है।


2 वह सबसे अधिक सरल भाषा है।

3 वह सबसे अधिक लचीली भाषा है।

4 वह एक मात्र ऐसी भाषा है जिसके अधिकतर नियम अपवादविहीन है।

5 वह सच्चे अर्थों में विश्व भाषा बनने की पूर्ण अधिकारी है।

6 हिन्दी लिखने के लिये प्रयुक्त देवनागरी लिपि अत्यन्त वैज्ञानिक है।

7 हिन्दी को संस्कृत शब्दसंपदा एवं नवीन शब्द-रचना-सामर्थ्य विरासत में मिली है।
वह देशी भाषाओं एवं अपनी बोलियों आदि से शब्द लेने में संकोच नहीं करती। अंग्रेजी के मूल शब्द लगभग १०,००० हैं, जबकि हिन्दी के मूल शब्दों की संख्या ढाई लाख से भी अधिक है।

8 हिन्दी बोलने एवं समझने वाली जनता पचास करोड़ से भी अधिक है।

9 हिन्दी का साहित्य सभी दृष्टियों से समृद्ध है।

10 हिन्दी आम जनता से जुड़ी भाषा है तथा आम जनता हिन्दी से जुड़ी हुई है। हिन्दी कभी राजाश्रय की मोहताज नहीं रही।

11 भारत के स्वतंत्रता-संग्राम की वाहिका और वर्तमान में देशप्रेम का अमूर्त-वाहन

12 भारत की सम्पर्क भाषा

13 भारत की राजभाषा



                                                 हिन्दी की विशेषताएँ

हिंदी को देवनागरी लिपि में लिखा जाता है। इसे नागरी नाम से भी पुकारा जाता है। देवनागरी में 11 स्वर और 33 व्यंजन होते हैं और इसे बाएं से दायें और लिखा जाता है।


                                             हिन्दी की शैलियाँ

हिन्दी क्षेत्र तथा सीमावर्ती भाषाएँ


भाषाविदों के अनुसार हिन्दी के चार प्रमुख रूप या शैलियाँ हैं :


(१) उच्च हिन्दी - हिन्दी का मानकीकृत रूप, जिसकी लिपि देवनागरी है। इसमें संस्कृत भाषा के कई शब्द है, जिन्होंने फ़ारसी और अरबी के कई शब्दों की जगह ले ली है। इसे शुद्ध हिन्दी भी कहते हैं। आजकल इसमें अंग्रेज़ी के भी कई शब्द आ गये हैं (ख़ास तौर पर बोलचाल की भाषा में)। यह खड़ीबोली पर आधारित है, जो दिल्ली और उसके आस-पास के क्षेत्रों में बोली जाती थी।



(२) दक्खिनी - हिन्दी का वह रूप जो हैदराबाद और उसके आसपास की जगहों में बोला जाता है। इसमें फ़ारसी-अरबी के शब्द उर्दू की अपेक्षा कम होते हैं।



(३) रेख़्ता - उर्दू का वह रूप जो शायरी में प्रयुक्त होता है।



(४) उर्दू - हिन्दी का वह रूप जो देवनागरी लिपि के बजाय फ़ारसी-अरबी लिपि में लिखा जाता है। इसमें संस्कृत के शब्द कम होते हैं, और फ़ारसी-अरबी के शब्द अधिक। यह भी खड़ीबोली पर ही आधारित है।

हिन्दी और उर्दू दोनों को मिलाकर हिन्दुस्तानी भाषा कहा जाता है। हिन्दुस्तानी मानकीकृत हिन्दी और मानकीकृत उर्दू के बोलचाल की भाषा है। इसमें शुद्ध संस्कृत और शुद्ध फ़ारसी-अरबी दोनों के शब्द कम होते हैं और तद्भव शब्द अधिक। उच्च हिन्दी भारतीय संघ की राजभाषा है (अनुच्छेद ३४३, भारतीय संविधान)। यह इन भारतीय राज्यों की भी राजभाषा है : उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, उत्तरांचल, हिमाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली। इन राज्यों के अतिरिक्त महाराष्ट्र, गुजरात, पश्चिम बंगाल, पंजाब (भारत) और हिन्दी भाषी राज्यों से लगते अन्य राज्यों में भी हिन्दी बोलने वालों की अच्छी संख्या है। उर्दू पाकिस्तान की और भारतीय राज्य जम्मू और कश्मीर की राजभाषा है। यह लगभग सभी ऐसे राज्यों की सह-राजभाषा है; जिनकी मुख्य राजभाषा हिन्दी है।





Monday, 31 August 2015

World Hindi Conference



दसवाँ विश्व हिंदी सम्मेलन
10th World Hindi Conference Bhopal (M.P.)

विश्व हिंदी सम्मेलनों की परंपरा 1975 में नागपुर में आयोजित प्रथम विश्व हिंदी सम्मेलन से शुरू हुई। तब से इन सम्मेलनों ने एक वैश्विक स्वरूप और गति प्राप्त कर ली है। क्रमानुसार, नौ विश्व हिंदी सम्मेलन विश्व के विभिन्न शहरों में आयोजित किए जा चुके हैं - वस्तुत: दो बार पोर्ट लुई (मॉरीशस) में, दो बार भारत में, पोर्ट ऑफ स्पेन (ट्रिनिडाड एण्ड टोबेगो), लंदन (यू. के.), पारामारिबो (सूरीनाम), न्यूयार्क (अमरीका) और जोहांसबर्ग (दक्षिण अफ्रीका) में। इन सम्मेलनों ने हमेशा से ही प्रख्यात विद्वानों और हिंदी से स्नेह रखने वाले लोगों को आकर्षित किया है।



दसवें विश्व हिंदी सम्मेलन में समकालीन मुद्दों और विषयों पर विचार-विमर्श किया जाएगा तथा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, सूचना प्रौद्योगिकी, प्रशासन और विदेश नीति, विधि, मीडिया आदि के क्षेत्रों में हिंदी के सामान्य प्रयोग और विस्तार से संबंधित तौर तरीकों पर गंभीर चर्चा होगी। सम्मेलन का मुख्य विषय 'हिंदी जगत : विस्तार एवं संभावनाएँ' है। निर्धारित विषयों पर सम्मेलन में समानांतर शैक्षिक सत्र भी चलेंगे ।

सम्मेलन के आयोजन से संबंधित विभिन्न पहलुओं पर विचार-विमर्श करने के लिए परामर्श, प्रबंधन और कार्यक्रम से संबंधित तीन समितियाँ गठित की गई हैं। परामर्श एवं कार्यक्रम समितियों की अध्यक्ष माननीय विदेश मंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज हैं जबकि प्रबंधन समिति के अध्यक्ष माननीय विदेश राज्य मंत्री जनरल (सेवानिवृत्त) डॉ. वी.के. सिंह हैं।

सम्मेलन का आयोजन स्थल "लाल परेड मैदान", भोपाल है ।

Tuesday, 18 August 2015

Group of Bytes





Group of Bytes


INTERNET TIMELINE TRIVIA & Devolopment



INTERNET TIMELINE TRIVIA

1957: The Advanced Research Projects Agency (AARPA) is formed.

1961: The Massachusetts Institute of Technology (MIT) began researching


data-sharing potential. There are fewer than 9,500 computers in the world

1966: ARPANET is under development, packet-switching technology is launched.

1969: ARPANET is launched.

1971: The number of nodes on the ARPANET is 15.

1973: London and Norway join ARPANET. Global communications are launched.

1974: TCP is launched. Data communication speeds increase and the reliability of data transmission improves.

1975: The first ARPANET mailing list is launched. TCP tests are run successfully from the U.S. mainland to Hawaii as well as to the U.K., via satellite links.


1976: Unix is developed.

1978: TCP and IP split into two separate protocols.

1982: TCP/IP becomes the standard used by the Department of Defense for data communication within the U.S. military’s network.


1984: The number of nodes on the Internet is over 1,000. Domain Name Service is launched.

1987: The number of nodes on the Internet is over 10,000.

1988: The Internet experiences its first Internet worm.

1989: The number of nodes on the Internet is over 100,000.

1990: ARPANET is disbanded. The first commercial Internet service provider (ISP) is launched.


1991: The first Internet connection is made (at 9600 baud). The World Wide Web is launched.


1992: The number of nodes on the Internet is over 1,000,000.

1994: The WWW becomes the most popular service on the Internet.Some radio stations start broadcasting over the Internet.


1995: Internet streaming technology is introduced.

1996: Web browser software vendors begin a ‘‘browser war.’’

1997: Over 70,000 mailing lists are now registered.

1998: The 2,000,000th domain name is registered.

2000: The first major denial-of-service (DoS) attack is launched. Most major websites are affected.


2002: Blogs become cool.

2003: Flash mobs are born. Flash mobs are groups of people who gather online and plan a meeting in a public place. Once they assemble, they perform a predetermined action, ranging from pillow fights to zombie walks. The participants leave as soon as the meeting is over. (Wikipedia has a good article about flash mobs:)


2005: The Microsoft Network (MSN) reports that there are over 200 million active Hotmail accounts.


2006: Joost is launched, allowing for the sharing of TV shows and video using peer-to-peer technology.


2008: Online search engine Technorati reported that they are
now tracking and indexing over 112 million online blogs.

Thursday, 30 July 2015

एक याद डॉ. कलाम के नाम



एक याद डॉ. कलाम के नाम






राष्ट्रपति बनाने ढूंढना पड़ा था डॉ. कलाम को, तोड़ी राष्ट्रपति भवन की परंपराएं



भारत का राष्ट्रपति बनने के लिए बड़े-बड़े नेता एड़ी-चोटी का जोर लगा देते हैं। राजनीतिक पार्टियों के गुणा-भाग चलते हैं सो अलग। जिस समय डॉ. कलाम को राष्ट्रपति बनाने की चर्चा चली इसकी उन्हें भनक तक नहीं थी। कलाम उस दौरान चेन्नई विश्वविद्यालय के होस्टल के एक छोटे-से कमरे में रह रहे थे। एनडीए सरकार ने फैसला किया कि कलाम राष्ट्रपति पद के उनके उम्मीदवार होंगे। इस बात की सूचना देने के लिए उन्हें ढूंढना पड़ा था। कलाम ने राष्ट्रपति बनने के बाद राष्ट्रपति भवन की कई परंपराओं को बंद करा दिया।


अपनी पुस्तक टर्निंग प्वाइंट्स: ए जर्नी थ्रू चैलेंजेज में उन्होंने इस बात का जिक्र किया है कि वह कैसे भारत के 11वें राष्ट्रपति बनें। उन्होंने लिखा है कि अन्ना विश्वविद्यालय के सुंदर वातावरण में 10 जून 2002 की सुबह और दिनों की तरह ही थी, जहां मैंने दिसम्बर 2001 से काम करना शुरू किया था। विश्वविद्यालय के बड़े और शांत परिसर में वहां के प्रोफेसरों और शोध विद्यार्थियों के साथ काम करते हुए मेरा अच्छा समय बित रहा था।

मेरे क्लास में केवल 60 बच्चों के बैठने की ही व्यवस्था थी, लेकिन उसमें करीब 350 से ज्यादा छात्र बैठा करते थे और कोई ऐसा तरीका भी नहीं था जिससे उनको रोका जा सके। मेरा काम परास्नातक के युवा छात्रों की सोच को जानना और मैंने जो राष्ट्रीय स्तर पर काम किए उनके तजुर्बों को उनसे साझा करना था। मुझे अपने 10 लेक्चर के जरिए उनको यह समझाना था कि समाज को बदलने के लिए तकनीक का प्रयोग कैसे किया जा सकता है।


और क्या लिखा है डॉ. कलाम ने


वह मेरा नौवां व्याख्यान था जिसका शीर्षक 'विजन टू मिशन' था जिसमें कुछ मामलों का अध्ययन भी शामिल था। मैंने जैसे ही अपना व्याख्यान खत्म किया मुझे कई सवालों के जवाब देने पड़े। इसके अलावा मेरे क्लास की अवधि 1 घंटे से बढ़ाकर 2 घंटे करनी पड़ी। इसके बाद मैं और दिनों की तरह अपने कार्यालय में आ गया और शोध छात्रों के साथ बैठकर खाना खाया। हमारा कुक प्रसंगम ने हमें अच्छा खाना खिलाया।

खाने के बाद मैं अपने दूसरे क्लास के लिए गया और फिर शाम को वापस अपने कमरे में आ गया। मैं जब वापस आ रहा था तो उसी समय विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर प्रोफेसर ए कलानिधि पीछे से आए और मेरे साथ चलने लगे। उन्होंने कहा कि आज सुबह से ही मेरे कार्यालय कई फोन आ चुके हैं और कोई है जो आपसे बात करने के लिए काफी उत्सुक है। मैं जैसे ही अपने कमरे में पहुंचा, मैंने पाया कि मेरा फोन बज रहा था। मैंने फोन उठाया तो उधर से आवाज आई, 'प्रधानमंत्री आपसे बात करना चाहते हैं।'

अभी मैं फोन पर प्रधानमंत्री से बात करने का इंतजार कर रहा था इसी दौरान आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडु ने मेरे सेलफोन पर फोन किया। उन्होंने बताया कि प्रधानमंत्री मुझे फोन करने वाले हैं। उन्होंने यह भी कहा, 'कृपया ना मत कहिएगा।' जब मैं नायडु से बात कर रहा था तभी फोन पर प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की आवाज सुनाई दी। उन्होंने पूछा, 'कलाम, आपका शैक्षणिक जीवन कैसा है?' मैंने जवाब दिया, 'बिल्कुल अच्छा।'


वाजपेयी जी ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि हमारे पास आपके लिए एक जरूरी खबर है। मैं अभी एनडीए के सभी राजनीतिक पार्टी के नेताओं की विशेष बैठक से होकर आ रहा हूं। हमने निर्णय लिया है कि देश को राष्ट्रपति के रूप में आपकी जरूरत है। मुझे आपकी सहमति के रूप में केवह 'हां' चाहिए 'ना' नहीं।

हम सर्वसम्मति से करेंगे काम


कमरे में आने के बाद मुझे अभी बैठने का मौका भी नहीं मिला था। मेरे सामने भविष्य की अलग-अलग तस्वीरें दिखाई दे रही थीं। उनमें से एक यह था कि मैं शिक्षकों और छात्रों से घिरा हुआ हूं। मैंने वाजपेयी जी से निर्णय लेने के लिए दो घंटे का समय मांगा और कहा कि मेरे नाम पर राजनीतिक पार्टियों की सहमति भी होनी चाहिए। तो उन्होंने कहा कि पहले आप सहमत होइए, फिर हम सर्वसम्मति पर काम करेंगे।

इन दो घंटों के दरमियान मैं अपने करीबी मित्रों को 30 फोन कॉल किए जिनमें कुछ शैक्षणिक क्षेत्र से, कुछ नागरिक सेवाओं और कुछ राजनीति के क्षेत्र से जुड़े हुए थे। उस वक्त मेरे सामने दो दृश्य उभर रहे थे। पहला यह कि मैं अपने शैक्षणिक जीवन का आनंद ले रहा था और यह मेरा शौक भी था उसे मैं छोड़ना नहीं चाहता था। दूसरा यह कि भारत 2020 विजन को जनता और संसद के सामने रखने का इससे बढ़िया अवसर नहीं मुझे फिर नहीं मिलने वाला था।

दो घंटे के बाद मैंने प्रधानमंत्री जी से बात की और कहा, 'वाजपेयी जी, मैं एक विशेष उद्देश्य के लिए अपनी स्वीकृति दे रहा हूं और मैं सभी पार्टियों का प्रत्याशी बनना चाहूंगा।' उन्होंने कहा, 'ठीक है, हम इस पर काम करेंगे, धन्यवाद।' करीब 15 मिनट में ही यह संदेश पूरे देश में फैल गया और मेरे पास ढेर सारे फोन आने लगे। मेरी सुरक्षा बढ़ा दी गई और ढेर सारे लोग मुझसे मिलने के लिए मेरे कमरे में जमा हो गए।


पहली बार मीडिया से मिले


राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी के रूप में अपना आवेदन करने के बाद 18 जून को जब मैं पहली बार मीडिया से मुखातिब हुआ तो मुझसे कई तरह के सवाल पूछे गए। इसमें गुजरात दंगे और अयोध्या में राम मंदिर बनाने के सवाल भी शामिल थे। राष्ट्रपति के तौर पर मेरा देश के लिए क्या विजन होगा इस पर भी सवाल पूछे गए।

इन सभी मुद्दों लिए मैंने शिक्षा और विकास के रास्ते ही समाधान की बात कही। चेन्नई से जब मैं 10 जुलाई को दिल्ली आया तो यहां तैयारियां पूरे जोर से चल रही थीं। बीजेपी के प्रमोद महाजन मेरे चुनाव एजेंट थे। मेरा फ्लैट बहुत ज्यादा बड़ा तो नहीं था लेकिन सुविधाजनक जरूर था।


मैंने अपने हॉल में ही अपना काम शुरू कर दिया और कुछ समय बाद वहां एक इलेक्ट्रानिक कैंप कार्यालय बन गया। मैंने लोकसभा और राज्यसभा के करीब 800 सांसदों को बतौर राष्ट्रपति देश के प्रति मेरा क्या नजरिए रहेगा उससे अवगत कराया और मुझे वोट करने की अपील की। इसका नतीजा यह हुआ कि मुझे बड़े अंतर से 18 जुलाई को राष्ट्रपति चुन लिया गया।


सामने थी सबसे बड़ी समस्या


इसके बाद मेरे सामने एक नई समस्या खड़ी हो गई। 25 जुलाई को होने वाले शपथ ग्रहण समारोह के दौरान अतिथियों की सूची बनाने में मुझे काफी दिक्कत हुई। संसद के केंद्रीय हॉल में केवल एक हजार लोगों की व्यवस्था थी। इनमें से सभी सांसदों, राजनयिकों और पूर्व राष्ट्रपति केआर नारायणन के अतिथियों की संख्या मिलाने के बाद केवल 100 अतिरिक्त लोगों की जगह वहां बची थी।

हम इसको बढ़ाकर इसकी संख्या 150 तक ले गए। अब इन 150 लोगों में किसको शामिल करूं यह भी एक चुनौती थी। मेरे परिवार के लोगों की संख्या ही 37 थी। इसके बाद मेरे भौतिक के शिक्षक चिन्नादुरई, प्रोफेसर केवी पंडलई और इनके अलावा मेरे दोस्त कई अन्य प्रोफेसर, पत्रकार मित्र, नृत्यांगना मित्र, उद्योगपति और न जाने कितने ही लोग मेहमानों की सूची में शामिल थे।

इसके अलावा इनमें देश के सभी राज्यों से 100 बच्चों को भी शामिल किया गया जिनके लिए अलग से एक पंक्ति बनाई गई। वह दिन बहुत गरम था लेकिन सभी लोग औपचारिक परिधानों में ऐतिहासिक केंद्रीय हॉल में पहुंचे और मेरे शपथ ग्रहण समारोह का हिस्सा बने।


देर से खाते थे खाना, कई प्रथाएं कराई बंद


डॉ. कलाम रात का खाना देरी से खाया करते थे। राष्ट्रपति के प्रोटोकाल के हिसाब से जब तक वह भोजन नहीं कर लें तब तक कोई भोजन नहीं करता था। जब कलाम राष्ट्रपति बने तो उन्होंने इस प्रथा को बंद करवा दिया। उनके लिए महज एक रसोईया रात को देर तक जागता था। वह उन्हें खाना खिलाकर सो जाता था। इसके बाद उसकी दूसरे दिन सुबह की छुट्टी होती थी।


जूते कभी नहीं बंधवाए


उन्होंने राष्ट्रपति भवन में महामहिम के जूते के बंद बांधने की परंपरा भी बंद कराई। जब पहली बार डॉ. कलाम के जूते के बंद बांधने एक कर्मचारी पहुंचा तो वे बेहद नाराज हुए और कहा कि वे आज तक अपने जूते के बंद खुद ही बांधते आए हैं और आगे भी बांधेंगे।

Thursday, 23 July 2015

Top GK in Hindi



Top GK in Hindi

1 भारत (India) विश्व का सर्वाधिक पटसन उत्पादक देश है।

2 भारत (India) विश्व का सर्वाधिक अदरक उत्पादक देश है।


3 भारत (India) विश्व का सर्वाधिक केला उत्पादक देश है।

4 भारत (India) विश्व का सर्वाधिक आम उत्पादक देश है।

5 भारत (India) विश्व का सर्वाधिक पपीता उत्पादक देश है।

6 भारत (India) सरकार समर्थित परिवार नियोजन कार्यक्रम आरम्भ करने वाला विश्व का पहला देश है।

7 भारत (India) का पोस्टल नेटवर्क (postal network) संसार का सबसे बड़ा पोस्टल नेटवर्क (postal network) है।

8 भारत (India) संसार का सबसे बड़ा थोरियम भंडार वाला देश है।

9 भारत (India) संसार का सबसे अधिक पशुधन वाला देश है।

10 भारत (India) संसार का सबसे बड़ा स्वर्णाभूषण उपभोक्ता वाला देश है।

11 भारत (India) विश्व का सर्वाधिक दुग्ध उत्पादक देश है।

12 भारत (India) विश्व का सर्वाधिक मोटा अनाज (ज्वार, बाजरा, जौ, कोदो, कुंकनी आदि) उत्पादक देश है।


13 भारत (India) विश्व का सर्वाधिक सैफ्लावर आयल सीड्स उत्पादक देश है।

14 भारत (India) विश्व का दूसरा सर्वाधिक चाय उत्पादक देश है। प्रथम स्थान चीन का है।

15 भारत (India) विश्व का दूसरा सर्वाधिक गन्ना उत्पादक देश है। प्रथम स्थान ब्राजील का है।

16 भारत (India) विश्व का दूसरा सर्वाधिक गेहूँ उत्पादक देश है। प्रथम स्थान चीन का है।

17 भारत (India) विश्व का दूसरा सर्वाधिक प्याज उत्पादक देश है। प्रथम स्थान चीन का है।

18 भारत (India) विश्व का दूसरा सर्वाधिक लहसुन उत्पादक देश है। प्रथम स्थान चीन का है।

19 भारत (India) विश्व का दूसरा सर्वाधिक आलू उत्पादक देश है। प्रथम स्थान चीन का है।

20 भारत (India) विश्व का दूसरा सर्वाधिक धान उत्पादक देश है। प्रथम स्थान चीन का है।

21 भारत (India) विश्व का दूसरा सर्वाधिक बिनौला उत्पादक देश है। प्रथम स्थान चीन का है।

22 भारत (India) विश्व का दूसरा सर्वाधिक सीमेंट उत्पादक देश है। प्रथम स्थान चीन का है।

23 भारत (India) विश्व का दूसरा सर्वाधिक कृषि भूमि वाला देश है। प्रथम स्थान संयुक्त राज्य अमेरिका का है।

विश्व की 500 सबसे बड़ी कंपनियों में सात भारतीय



विश्व की 500 सबसे बड़ी कंपनियों में सात भारतीय

रिलायंस इंडस्ट्रीज और टाटा मोटर्स समेत सात भारतीय कंपनियां विश्व की 500 सबसे बड़ी कंपनियों में हैं। फाच्र्यून पत्रिका की इस सूची में शीर्ष पर वालमार्ट है। 2015 की फाच्र्यून ग्लोबल 500 सूची में इंडियन आयल 119वें स्थान पर है। इसकी वार्षिक आय करीब 74 अरब डॉलर है। 62 अरब डॉलर की आय वाली रिलायंस इंडस्ट्रीज (158वें), 42 अरब डॉलर के साथ टाटा मोटर्स (254वें):, 42 अरब डॉलर के साथ भारतीय स्टेट बैंक (260वें), 40 अरब डॉलर के साथ भारत पेट्रोलियम (280वें), 35 अरब
डॉलर की आय के साथ हिंदुस्तान पेट्रोलियम :327वें: और 26 अरब डॉलर की आय के साथ ओएनजीसी (449वे) स्थान पर है। विश्व की 500 प्रमुख कंपनियों की सम्मिलित आय 2014 में 31200 अरब डॅालर रही और मुनाफा।,700 अरब डॅालररहा। इस साल की 500 सर्वश्रेष्ठ कंपनियों में वैश्विक स्तर पर 6.5 करोड़ कर्मचारी काम करते हैं और 36 देशों में इनका परिचालन है।

Wednesday, 1 July 2015

डिजिटल इंडिया की क्या हैं

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सरकार का पहला लक्ष्य है ब्रॉडबैंड हाइवे. इसके तहत देश के आख़िरी घर तक ब्रॉडबैंड के ज़रिए इंटरनेट पहुंचाने का प्रयास किया जाएगा.
लेकिन इसमें सबसे बड़ी बाधा है कि नेशनल ऑप्टिक फ़ाइबर नेटवर्क का प्रोग्राम, जो तीन-चार साल पीछे चल रहा है. सरकार को ये समझना होगा कि जब आप गांव-गांव तार बिछाने जाएंगे तो आप उन लोगों को ये काम नहीं सौंप सकते जो पिछले 50 साल से कुछ और बिछा रहे हैं. आपको वो लोग लगाने होंगे जो ऑप्टिक फ़ाइबर नेटवर्क की तासीर समझते हैं.
सरकार का दूसरा लक्ष्य है सबके पास फोन की उपलब्धता, जिसके लिए ज़रूरी है कि लोगों के पास फ़ोन खरीदने की क्षमता हो. ख्याल अच्छा है लेकिन सरकार को ये सोचना होगा कि क्या सबके पास फोन खरीदने की क्षमता आ गई है. या फिर सरकार अगर ये सोच रही है कि वो खुद सस्ते फोन बनाएगी तो इसके लिए तकनीक और तैयारी कहां है?
तीसरा स्तंभ है पब्लिक इंटरनेट एक्सेस प्रोग्राम.
हर किसी के लिए इंटरनेट हो यह अच्छी बात है. इसके लिए पीसीओ के तर्ज पर पब्लिक इंटरनेट एक्सेस प्वाइंट बनाए जा सकते हैं. ये पीसीओ आसानी से समस्या हल कर सकते हैं, लेकिन हर पंचायत के स्तर पर इसको लगाना और चलाना कोई आसान काम नहीं है. इसी के चलते पिछले कई साल से योजना लंबित है.
चौथा है ई-गवर्नेंस. यानी सरकारी दफ्तरों को डिजीटल बनाना और सेवाओं को इंटरनेट से जोड़ने का.
इसे लागू करने का पिछला अनुभव बताता है कि दफ्तर डिजीटल होने के बाद भी उनमें काम करने वाले लोग डिजिटल नहीं हो पा रहे हैं. इसका तोड़ निकालने का कोई नया तरीका ढूंढा है किया सरकार ने?

ई-क्रांति

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ये ई-गवर्नेंस से जुड़ा मसला है और सरकार की मंशा है कि इंटरनेट के ज़रिए विकास गांल-गांव तक पहुंचे. मुझे लगता है इस पर सबसे ज़्यादा ध्यान देने की ज़रूरत है.
ई-क्रांति के लिए हमारा दिमाग, हमारी सोच, हमारा प्रशिक्षण और उपकरण सबकुछ डिजिटल होना ज़रूरी है.
अगर हमने सरकार के ढांचे को इंटरनेट से नहीं जोड़ा तो फिर इसके तहत डिलीवरी कैसे करेंगे?
और अगर कर भी दी, तो सही में इसका फायदा लोगों तक नहीं पहुंचता है. इसमें बड़ी धांधली होती है.
सरकार ने अपने लिए छठा लक्ष्य रखा है इंफ़ोर्मेशन फ़ॉर ऑल यानी सभी को जानकारियाँ मुहैया कराई जाएंगी.
लेकिन सवाल उठता है कि एक्सेस टू इंफ़ॉर्मेशन के अभाव में यह कैसे संभव है?
इसके लिए ज़रूरी है अच्छा एक्सेस इंफ्रास्ट्रक्चर होना ताकि लोग आसानी से जानकारियां पा सकें. साथ ही इसके तहत सिर्फ सूचनाएं पहुंचाना सरकार का लक्ष्य है या ज़मीनी सूचनाएं इक्ठठी करना भी है. अगर सिर्फ पहुंचाना मकसद है तो यह गैर-लोकतांत्रिक है.
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सातवां लक्ष्य है इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादन का.
इसके तहत उद्देश्य इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों के लिए कल-पुर्जों के आयात को शून्य करना है.
यह कभी भी संभव नहीं है क्योंकि पूरी दुनिया चाहती है व्यापार करना.
जहां तक इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादों के उत्पादन का सवाल है तो अभी तक हम इस मामले में शहरों तक ही सीमित हैं और गांवों तक जा ही नहीं रहे हैं.
इसमें नीति और नियमितता की चुनौतियां बहुत ज्यादा है.

रूरल बीपीओ

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आठवां है आईटी फ़ॉर जॉब्स. सरकार अगर आईटी क्षेत्र के ज़रिए नौकरियां पैदा करना चाहती हैं तो मेरे ख्याल से हर ब्लॉक स्तर पर हमें रूरल बीपीओ खोल देना चाहिए.
रुरल बीपीओ प्रोग्राम से रोज़गार के अवसर भी बनेंगे, डिजिटाइजेशन और ई-गवर्नेंस भी होगा. ये काम भी पिछले कई साल से लंबित है.
डि़जीटल क्रांति के लिए नौवां स्तंभ है अर्ली हार्वेस्ट प्रोग्राम. इस लक्ष्य को मैं बिलकुल नहीं समझ पाया हूं. मोटे तौर इसका संबंध दफ्तरों और स्कूल-कॉलेजों में विद्यार्थियों और शिक्षकों की हाज़िरी से है, लेकिन सरकार इसके ज़रिए क्या करना चाहती है ये जनना ज़रूरी है.
लेकिन अहम बात यह है कि क्या हम इन नौ उद्देश्यों को पुराने दिमाग से चला रहे हैं. अगर वही ईंट-पत्थर तोड़ने वाले राज-मिस्त्री ज़मीनी स्तर पर इसके लिए काम करेंगें तो क्या काम हो पाएगा?
और अगर हम इसे नई सोच के तहत करना चाहते हैं तो इसके लिए हमें पूरी तरह से नया रवैया अपनाना पड़ेगा.
गांव में डिजीटल तकनीक को लेकर मैंने जो काम किया है उसके आधार पर कह सकता हूं कि अगर सब-कुछ सटीक उस तरह हो जाए जैसा कागज़ों पर दिखता है तब भारतीय परिस्थितियों में इन लक्ष्यों को पूरा होने में कम से कम दस साल लगेंगे.

Saturday, 23 May 2015

योग का संक्षिप्त इतिहास (International Yoga Day)



International Yoga Day On December 11, 2014, The 193-member U.N. General Assembly approved by consensus, a resolution establishing June 21 as 'International Day of Yoga'


योग का संक्षिप्त इतिहासः


योग के विज्ञान का जन्म हजारों सालों पहले प्रथम धर्म या विश्वास के पैदा होने से भी बहुत पहले हुआ। योग शिक्षा के अनुसार शिव को प्रथम योगी या आदियोगी और प्रथम गुरु या आदिगुरु के रूप में देखा जाता है। कई हजार साल पहले हिमालय में कांतिसरोवर झील के किनारे पर अदियोगी ने अपने गहरे ज्ञान को पौराणिक सप्तऋिषियों या “सात ऋिषियों" को प्रदान किया। ये ऋषि इस शक्तिशाली योग विज्ञान को एशिया, मध्य पूर्व, उत्तरी अफ्रीका और दक्षिणी अमेरिका सहित अनेकों भागों में लग गए। आधुनिक विद्वान हैरान हैं कि पूरे संसार की प्राचीन संस्कृतियों में गहरी समानता है। लेकिन भारत मे योग परम्परा पूरी तरह से विकसित हुई। अगस्त्य सप्तऋषि जिन्होंने भारतीय उपमहाद्वीप की यात्रा की, ने एक मूल योग जीवन शैली के चारों और इस संस्कृति का निर्माण किया।


योग को व्यापक स्तर पर सिंधु सरस्वती घाटी संभ्याता-2700 ई.पू-के एक “अमिट सांस्कृतिक परिणाम" के रूप में समझा जाता है, और इसने अपने आपको मानवता का भौतिक और आध्यात्मिक विकास करने वाला प्रमाणित किया है। योग के प्रतीक और योग साधना करती हुई आकृतियांे के साथ सिंधु सरस्वती घाटी सभ्यता की मुहरें और जीवाश्म प्राचीन भारत में योग साधना की उपस्थिति की ओर संकेत करते हैं। योग की लोक परम्पराओं, वैदिक और उपनिषद विरासत, बौद्ध और जैन परम्पराओं, दर्शनों, महाकाव्य महाभारत, भागवतगीता और रामायण, शिव भक्ति परम्पराओं, वैष्णव एवं तांत्रिक परम्पराओं में भी विद्यमान है। यद्यपि योग का अभ्यास पूर्व-वैदिक काल में किया जाता था, लेकिन महान ऋषि पतंजलि ने पहले से विद्यमान योग अभ्यासों, इसके अर्थ और इससे संबंधित ज्ञान को पतंजलि योग सूत्र के माध्यम से व्यवस्थित किया।


पतंजलि के बाद बहुत से ऋषियों और योग गुरुओं ने अच्छी तरह से लिखे गए अभ्यासों और साहित्य के माध्यम से इस विषय को संरक्षित करने और इसका विकास करने में महान योगदान दिया। प्राचीन समय से लेकर आज तक प्रमुख योग गुरुओं की शिक्षाओं के माध्यम से योग संसार भर में फैला है। आज हर किसी की धारणा है कि योग अभ्यास बीमारियों से बचाता है, स्वास्थ्य को बनाए रखता है और इसको बढावा देता है। संसार में लाखों लोग योग अभ्यास से लाभ प्राप्त कर चुके हैं और योग प्रतिदिन अधिक से अधिक विकसित होता जार रहा।




अंतरराष्ट्रीय योग दिवस


अंतरराष्ट्रीय योग दिवस 21 जून को मनाया जाएगा। जिसकी पहल भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 27 सितम्बर 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपने भाषण में रखकर की। जिसके बाद 21 जून को "अंतरराष्ट्रीय योग दिवस" घोषित किया गया। 11 दिसम्बर 2014 को संयुक्त राष्ट्र में 193 सदस्यों द्वारा 21 जून को "अंतरराष्ट्रीय योग दिवस" को मनाने के प्रस्ताव को मंजूरी मिली। प्रधानमंत्री मोदी के इस प्रस्ताव को 90 दिन के अंदर पूर्ण बहुमत से पारित किया गया, जो संयुक्त राष्ट्र संध में किसी दिवस प्रस्ताव के लिए सबसे कम समय है।

Brief History of Yoga



Brief History of Yoga

The science of Yoga has its origin thousands of years ago, long before the first religion or belief systems were born. According to Yogic lore, Shiva has seen as the first yogi or Ādiyogi and the first guru or Ādiguru. Several thousand years ago, on the banks of lake Kantisarovar in the Himalayas, Ādiyogi poured his profound knowledge into the legendary Saptarishis or "seven sages". These sages carried this powerful Yogic science to different parts of the world including Asia, the Middle East, northern Africa and South America. Interestingly, modern scholars have noted and marvelled at the close parallels found between ancient cultures across the globe. However, it was in India that the Yogic system found its fullest expression. Agastya, the Saptarishi who travelled across the Indian subcontinent, crafted this culture around a core Yogic way of life.


Yoga is widely considered as an "immortal cultural outcome" of the Indus Saraswati Valley Civilisation – dating back to 2700 BC – and has proven itself to cater to both material and spiritual uplift of humanity. A number of seals and fossil remains of Indus Saraswati Valley Civilisation with Yogic motifs and figures performing Yoga sādhana suggest the presence of Yoga in ancient India. The seals and idols of mother Goddess are suggestive of Tantra Yoga. The presence of Yoga is also available in folk traditions, Vedic and Upanishadic heritage, Buddhist and Jain traditions, Darshanas, epics ofMahabharata including Bhagawadgita and Ramayana, theistic traditions of Shaivas, Vaishnavas and Tantric traditions. Though Yoga was being practiced in the pre-Vedic period, the great sage Maharishi Patanjali systematised and codified the then existing Yogic practices, its meaning and its related knowledge through Patanjali's Yoga Sutras.

After Patanjali, many sages and Yoga masters contributed greatly for the preservation and development of the field through well-documented practices and literature. Yoga has spread all over the world by the teachings of eminent Yoga masters from ancient times to the present date. Today, everybody has conviction about Yoga practices towards the prevention of disease, maintenance and promotion of health. Millions and millions of people across the globe have benefitted by the practice of Yoga and the practice of Yoga is blossoming and growing more vibrant with each passing day.



International Yoga Day

On December 11, 2014, The 193-member U.N. General Assembly approved by consensus, a resolution establishing June 21 as 'International Day of Yoga'

Tuesday, 12 May 2015

क्या है जीएसटी? Goods and Services Tax (GST)



क्या है जीएसटी? Goods and Services Tax (GST)

वस्तु एवं सेवा कर (गुड्स ऐंड सर्विसेज़ टैक्स) को संक्षिप्त रूप में जीएसटी कहते हैं.
गुड्स यानी जिन सामानों का इस्तेमाल हम करते हैं, उसमें कोई भी पैकेज्ड खाद्य सामग्री, शराब, सिगरेट पैकेट, मोबाइल हैंडसेट, ट्रक से लेकर कार तक शामिल है.
सेवाओं में हम दूरसंचार सेवाओं का इस्तेमाल कर रहे हैं. इस पर 14 प्रतिशत के क़रीब कर लगता है.


यानी जितना कर वस्तुओं पर होगा उतना ही सेवाओं पर भी लगेगा.

क्या हैं फायदे?

इससे कर प्रशासन आसान होगा. भारत में 20 प्रकार के कर लगते हैं और जीएसटी इन करों की जगह ले लेगा.
कर भुगतान हासिल करना आसान होगा. करदाताओं को फायदा मिलेगा. आख़िर में हर चीज़ का करदाता उपभोक्ता होता है.
हम अब भी सेवा कर और उत्पाद शुल्क चुकाते हैं. लेकिन जब कर व्यवस्था सही हो जाएगी तो इससे उपभोक्ताओं को सहूलियत होगी

List of scandals in India (भारत में भ्रष्टाचार का इतिहास)



भारत में भ्रष्टाचार का इतिहास




भारत में भ्रष्टाचार का इतिहास बहुत पुराना है। भारत की आजादी के पूर्व अंग्रंजों ने सुविधाएं प्राप्त करने के लिए भारत के सम्पन्न लोगों को सुविधास्वरूप धन देना प्रारंभ किया। राजे-रजवाड़े और साहूकारों को धन देकर उनसे वे सब प्राप्त कर लेते थे जो उन्हे चाहिए था। अंग्रेज भारत के रईसों को धन देकर अपने ही देश के साथ गद्दारी करने के लिए कहा करते थे और ये रईस ऐसा ही करते थे। यह भ्रष्टाचार वहीं से प्रारम्भ हुआ और तब से आज तक लगातार चलते हुए फल फूल रहा है।

बाबरनामा में उल्लेख है कि कैसे मुट्ठी भर बाहरी हमलावर भारत की सड़कों से गुजरते थे। सड़क के दोनों ओर लाखों की संख्या में खड़े लोग मूकदर्शक बन कर तमाशा देखते थे। बाहरी आक्रमणकारियों ने कहा है कि यह मूकदर्शक बनी भीड़, अगर हमलावरों पर टूट पड़ती, तो भारत के हालात भिन्न होते। इसी तरह पलासी की लड़ाई में एक तरफ़ लाखों की सेना, दूसरी तरफ़ अंगरेजों के साथ मुट्ठी भर सिपाही, पर भारतीय हार गये। एक तरफ़ 50,000 भारतीयों की फ़ौज, दूसरी ओर अंगरेजों के 3000 सिपाही. पर अंगरेज जीते. भारत फ़िर गुलाम हआ. जब बख्तियार खिलजी ने नालंदा पर ग्यारहवीं शताब्दी में आक्रमण किया, तो क्या हालात थे? खिलजी की सौ से भी कम सिपाहियों की फ़ौज ने नालंदा के दस हजार से अधिक भिक्षुओं को भागने पर मजबूर कर दिया। नालंदा का विश्वप्रसिद्ध पुस्तकालय वषों तक सुलगता रहा।


ब्रिटिश राज और भ्रष्टाचार

भारत को भ्रष्ट बनाने में अंग्रेजो की प्रमुख भूमिका रही है।

स्वतंत्रता-प्राप्ति और लाइसेंस-परमिट राज्य का उदय

द्वितीय विश्वयुद्ध की तबाही के कारण ब्रिटेन सहित पूरे विश्व में आवश्यक सामानों की भारी कमी पैदा हो गयी थी जिससे निपटने के लिये राशनिंग की व्यवस्था शुरू हुई। भारत की आजादी के बाद भी भारत की अर्थव्यवस्था राशनिंग, लाइसेंस, परमिट, लालफीताशाही में जकड़ी रही। लाइसेंस-परमिट राज था, तब भी लाइसेंस या परमिट पाने के लिए व्यापारी और उद्योगपति घूस दिया करते थे।

उदारीकरण और भ्रष्टाचार का खुला खेल

1991 में भारतीय अर्थव्यवस्था को उदारीकरण एवं वैश्वीकरण की विश्वव्यापी राजनीति-अर्थशास्त्र से जोड़ा गया। तब तक सोवियत संध का साम्यवादी महासंघ के रूप में बिखराव हो चुका था। पूर्वी यूरोप के अधिकांश देश पूंजीवादी विश्वव्यवस्था के अंग बनने की प्रक्रिया में प्रसव-पीड़ा में गुजर रहे थे। साम्यवादी चीन बाजारोन्मुखी पूंजीवादी औद्योगिकीकरण के रास्ते औद्योगिक विकास का नया मॉडल बन चुका था।

पहले भ्रष्टाचार के लिए परमिट-लाइसेंस राज को दोष दिया जाता था, पर जब से देश में वैश्वीकरण, निजीकरण, उदारीकरण, विदेशीकरण, बाजारीकरण एवं विनियमन की नीतियां आई हैं, तब से घोटालों की बाढ़ आ गई है। इन्हीं के साथ बाजारवाद, भोगवाद, विलासिता तथा उपभोक्ता संस्कृति का भी जबर्दस्त हमला शुरू हुआ है।







आजादी से अब तक देश में काफी बड़े घोटालों का इतिहास रहा है। नीचे भारत में हुए बड़े घोटालों का संक्षिप्त विवरण दिया गया है-जीप खरीदी (१९४८)

आजादी के बाद भारत सरकार ने एक लंदन की कंपनी से २००० जीपों को सौदा किया। सौदा ८० लाख रुपये का था। लेकिन केवल १५५ जीप ही मिल पाई। घोटाले में ब्रिटेन में मौजूद तत्कालीन भारतीय उच्चायुक्त वी.के. कृष्ण मेनन का हाथ होने की बात सामने आई। लेकिन १९५५ में केस बंद कर दिया गया। जल्द ही मेनन नेहरु केबिनेट में शामिल हो गए।साइकिल आयात (१९५१)

तत्कालीन वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के सेकरेटरी एस.ए. वेंकटरमन ने एक कंपनी को साइकिल आयात कोटा दिए जाने के बदले में रिश्वत ली। इसके लिए उन्हें जेल जाना पड़ा।मुंध्रा मैस (१९५८)

हरिदास मुंध्रा द्वारा स्थापित छह कंपनियों में लाइफ इंश्योरेंस कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया के १.२ करोड़ रुपये से संबंधित मामला उजागर हुआ। इसमें तत्कालीन वित्त मंत्री टीटी कृष्णामचारी, वित्त सचिव एच.एम.पटेल, एलआईसी चेयरमैन एल एस वैद्ययानाथन का नाम आया। कृष्णामचारी को इस्तीफा देना पड़ा और मुंध्रा को जेल जाना पड़ा।तेजा ऋण

१९६० में एक बिजनेसमैन धर्म तेजा ने एक शिपिंग कंपनी शुरू करने केलिए सरकार से २२ करोड़ रुपये का लोन लिया। लेकिन बाद में धनराशि को देश से बाहर भेज दिया। उन्हें यूरोप में गिरफ्तार किया गया और छह साल की कैद हुई।पटनायक मामला

१९६५ में उड़ीसा के मुख्यमंत्री बीजू पटनायक को इस्तीफा देने केलिए मजबूर किया गया। उन पर अपनी निजी स्वामित्व कंपनी 'कलिंग ट्यूब्स' को एक सरकारी कांट्रेक्ट दिलाने केलिए मदद करने का आरोप था।मारुति घोटाला

मारुति कंपनी बनने से पहले यहां एक घोटाला हुआ जिसमें पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का नाम आया। मामले में पेसेंजर कार बनाने का लाइसेंस देने के लिए संजय गांधी की मदद की गई थी।कुओ ऑयल डील

१९७६ में तेल के गिरते दामों के मददेनजर इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन ने हांग कांग की एक फर्जी कंपनी से ऑयल डील की। इसमें भारत सरकार को १३ करोड़ का चूना लगा। माना गया इस घपले में इंदिरा और संजय गांधी का भी हाथ है।अंतुले ट्रस्ट

१९८१ में महाराष्ट्र में सीमेंट घोटाला हुआ। तत्कालीन महाराष्ट्र मुख्यमंत्री एआर अंतुले पर आरोप लगा कि वह लोगों के कल्याण के लिए प्रयोग किए जाने वाला सीमेंट, प्राइवेट बिल्डर्स को दे रहे हैं।एचडीडब्लू दलाली (१९८७)

जर्मनी की पनडुब्बी निर्मित करने वाले कंपनी एचडीडब्लू को काली सूची में डाल दिया गया। मामला था कि उसने २० करोड़ रुपये बैतोर कमिशन दिए हैं। २००५ में केस बंद कर दिया गया। फैसला एचडीडब्लू के पक्ष में रहा।बोफोर्स घोटाला १९८७ में एक स्वीडन की कंपनी बोफोर्स एबी से रिश्वत लेने के मामले में राजीव गांधी समेत कई बेड़ नेता फंसे। मामला था कि भारतीय १५५ मिमी. के फील्ड हॉवीत्जर के बोली में नेताओं ने करीब ६४ करोड़ रुपये का घपला किया है।सिक्योरिटी स्कैम (हर्षद मेहता कांड)

१९९२ में हर्षद मेहता ने धोखाधाड़ी से बैंको का पैसा स्टॉक मार्केट में निवेश कर दिया, जिससे स्टॉक मार्केट को करीब ५००० करोड़ रुपये का घाटा हुआ।इंडियन बैंक

१९९२ में बैंक से छोटे कॉरपोरेट और एक्सपोटर्स ने बैंक से करीब १३००० करोड़ रुपये उधार लिए। ये धनराशि उन्होंने कभी नहीं लौटाई। उस वक्त बैंक के चेयरमैन एम. गोपालाकृष्णन थे।चारा घोटाला १९९६ में बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव और अन्य नेताओं ने राज्य के पशु पालन विभाग को लेकर धोखाबाजी से लिए गए ९५० करोड़ रुपये कथित रूप से निगल लिए।तहलका

इस ऑनलाइन न्यूज पॉर्टल ने स्टिंग ऑपरेशन के जारिए ऑर्मी ऑफिसर और राजनेताओं को रिश्वत लेते हुए पकड़ा। यह बात सामने आई कि सरकार द्वारा की गई १५ डिफेंस डील में काफी घपलेबाजी हुई है और इजराइल से की जाने वाली बारक मिसाइल डीलभी इसमें से एक है।स्टॉक मार्केट

स्टॉक ब्रोकर केतन पारीख ने स्टॉक मार्केट में १,१५,००० करोड़ रुपये का घोटाला किया। दिसंबर, २००२ में इन्हें गिरफ्तार किया गया।स्टांप पेपर स्कैम

यह करोड़ो रुपये के फर्जी स्टांप पेपर का घोटाला था। इस रैकट को चलाने वाला मास्टरमाइंड अब्दुल करीम तेलगी था।सत्यम घोटाला

२००८ में देश की चौथी बड़ी सॉफ्टवेयर कंपनी सत्यम कंप्यूटर्स के संस्थापक अध्यक्ष रामलिंगा राजू द्वारा ८००० करोड़ रूपये का घोटाले का मामला सामने आया। राजू ने माना कि पिछले सात वर्षों से उसने कंपनी के खातों में हेरा फेरी की।मनी लांडरिंग

२००९ में मधु कोड़ा को चार हजार करोड़ रुपये की मनी लांडरिंग का दोषी पाया गया। मधु कोड़ा की इस संपत्ति में हॉटल्स, तीन कंपनियां, कलकत्ता में प्रॉपर्टी, थाइलैंड में एक हॉटल और लाइबेरिया ने कोयले की खान शामिल थी।




बोफर्स घोटाला- ६४ करोड़ रु.

मामला दर्ज हुआ - २२ जनवरी १९९०

सजा - किसी को नहीं

वसूली - शून्य

एच.डी. डब्ल्यू सबमरीन- ३२ करोड़ रु.

मामला दर्ज हुआ - ५ मार्च १९९०

(सीबीआई ने अब मामला बंद करने की अनुमति मांगी है।)

सजा - किसी को नहीं

वसूली - शून्य

(१९८१ में जर्मनी से ४ सबमरीन खरीदने के ४६५ करोड़ रु. इस मामले में १९८७ तक सिर्फ २ सबमरीन आयीं, रक्षा सौदे से जुड़े लोगों द्वारा लगभग ३२ करोड़ रु. की कमीशनखोरी की बात स्पष्ट हुई।)

स्टाक मार्केट घोटाला- ४१०० करोड़ रु.

मामला दर्ज हुआ - १९९२ से १९९७ के बीच ७२

सजा - हर्षद मेहता (सजा के १ साल बाद मौत) सहित कुल ४ को

वसूली - शून्य

(हर्षद मेहता द्वारा किए गए इस घोटाले में लुटे बैंकों और निवेशकों की भरपाई करने के लिए सरकार ने ६६२५ करोड़ रुपए दिए, जिसका बोझ भी करदाताओं पर पड़ा।)

एयरबस घोटाला- १२० करोड़ रु.

मामला दर्ज हुआ - ३ मार्च १९९०

सजा - अब तक किसी को नहीं

वसूली - शून्य

(फ्रांस से बोइंग ७५७ की खरीद का सौदा अभी भी अधर में, पैसा वापस नहीं आया)

चारा घोटाला- ९५० करोड़ रुपए

मामला दर्ज हुआ - १९९६ से अब तक कुल ६४

सजा - सिर्फ एक सरकारी कर्मचारी को

वसूली - शून्य

(इस मामले में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव हालांकि ६ बार जेल जा चुके हैं)

दूरसंचार घोटाला-१२०० करोड़ रुपए

मामला दर्ज हुआ - १९९६

सजा - एक को, वह भी उच्च न्यायालय में अपील के कारण लंबित

वसूली - ५.३६ करोड़ रुपए

(तत्कालीन दूरसंचार मंत्री सुखराम द्वारा किए गए इस घोटाले में छापे के दौरान उनके पास से ५.३६ करोड़ रुपए नगद मिले थे, जो जब्त हैं। पर गाजियाबाद में घर (१.२ करोड़ रु.), आभूषण (लगभग १० करोड़ रुपए) बैंकों में जमा (५ लाख रु.) शिमला और मण्डी में घर सहित सब कुछ वैसा का वैसा ही रहा। सूत्रों के अनुसार सुखराम के पास उनके ज्ञात स्रोतों से ६०० गुना अधिक सम्पत्ति मिली थी।)

यूरिया घोटाला- १३३ करोड़ रुपए

मामला दर्ज हुआ - २६ मई १९९६

सजा - अब तक किसी को नहीं

वसूली - शून्य

(प्रधानमंत्री नरसिंहराव के करीबी नेशनल फर्टीलाइजर के प्रबंध निदेशक सी.एस.रामाकृष्णन ने यूरिया आयात के लिए पैसे दिए, जो कभी नहीं आया।)

सी.आर.बी- १०३० करोड़ रुपए

मामला दर्ज हुआ - २० मई १९९७

सजा - किसी को नहीं

वसूली - शून्य

(चैन रूप भंसाली (सीआरबी) ने १ लाख निवेशकों का लगभग १ हजार ३० करोड़ रु. डुबाया और अब वह न्यायालय में अपील कर स्वयं अपनी पुर्नस्थापना के लिए सरकार से ही पैकेज मांग रहा है।)

केपी- ३२०० करोड़ रुपए

मामला दर्ज हुआ - २००१ में ३ मामले

सजा - अब तक नहीं

वसूली - शून्य

(हर्षद मेहता की तरह केतन पारेख ने बैंकों और स्टाक मार्केट के जरिए निवेशकों को चूना लगाया।)

Friday, 17 April 2015

Net-Neutrality नेट न्यूट्रैलिटी



Net-Neutrality

क्या है नेट न्यूट्रैलिटी?

* Net Neutrality यानी अगर आपके पास इंटरनेट प्लान है तो आप हर वेबसाइट पर हर तरह के कंटेंट को एक जैसी स्पीड के साथ एक्सेस कर सकें।


* Neutrality के मायने ये भी हैं कि चाहे आपका टेलीकॉम सर्विस प्रोवाइडर कोई भी हो, अाप एक जैसी ही स्पीड पर हर तरह का डेटा एक्सेस कर सकें।

* कुल मिलाकर, इंटरनेट पर ऐसी आजादी जिसमें स्पीड या एक्सेस को लेकर किसी तरह की कोई रुकावट न हो।

* Net Neutrality टर्मिनोलॉजी का इस्तेमाल सबसे पहले 2003 में हुआ। तब काेलंबिया यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर टिम वू ने कहा था कि इंटरनेट पर जब सरकारें और टेलीकॉम कंपनियां डेटा एक्सेस को लेकर कोई भेदभाव नहीं करेंगी, तब वह Net Neutrality कहलाएगी।

Thursday, 12 March 2015

Cyber Crime साइबर क्राइम



Cyber Crime साइबर क्राइम

इंटरनेट का इस्तेमाल करने वाले करीब-करीब हर शख्स ने कोई न कोई साइबर क्राइम जरूर किया है। कानूनी नहीं तो नैतिक अपराध तो किया ही है। इनमें से ज्यादातर को तो इसका अंदाजा तक नहीं होता। वे कहीं से भी कोई चित्र, लेख या विडियो कॉपी-पेस्ट करते समय जरा भी नहीं झिझकते। इंटरनेट पर ऐसे तमाम काम हैं, जो साइबर क्राइम के तहत आते हैं।

कॉपी-पेस्ट या सामग्री की चोरी

- हर क्रिएटिव चीज बनाने वाले के पास एक खास हक होता है जो उसे अपनी सामग्री को गैरकानूनी ढंग से नकल किए जाने के खिलाफ सुरक्षा देता है। इसे कॉपीराइट कहते हैं।
- आपके लेख, कहानी, कविता, व्यंग्य, फोटो, संगीत की धुन, सॉफ्टवेयर, विडियो, कार्टून, एनिमेशन, किताब, ई-बुक, वेबसाइट वगैरह पर आपको यह खास हक हासिल है। कोई भी शख्स आपकी इजाजत के बिना आपकी रचना की कॉपी नहीं कर सकता और न ही उसे दूसरों को दे सकता है। ऐसा करना कॉपीराइट कानून का उल्लंघन है और आप उसके खिलाफ अदालत जा सकते हैं।
- कॉपीराइट लेने की एक कानूनी प्रक्रिया है, लेकिन अगर ऐसा नहीं भी करते, तो भी अपनी रचना पर आपका ही हक है।

- इसी तरह अगर आप किसी और का फोटो उसकी लिखित मंजूरी के बिना अपने फेसबुक प्रोफाइल पर पोस्ट करते हैं तो वह साइबर क्राइम है। गूगल इमेज या दूसरी इमेज होस्टिंग वेबसाइटों से अपनी पसंद का कोई फोटो लेकर उसे अपने ब्लॉग, सोशल नेटवर्किंग ठिकाने, वेबसाइट या पत्र-पत्रिका में इस्तेमाल करना भी उसी कैटिगरी में आता है।
- गूगल एक सर्च इंजन भर है, वह फ्री डाउनलोड साइट नहीं है। इसीलिए वह किसी भी पिक्चर के साथ उस वेब पेज को भी दिखाता है, जहां से उसे ढूंढा गया है। ऐसा करके वह पिक्चर चुराए जाने के मामले में किसी भी तरह की जिम्मेदारी से आजाद हो जाता है।

क्या करें

- अगर आपको गूगल इमेज सर्च पर मौजूद कोई फोटो इस्तेमाल करना है, तो कायदे से उस वेब पेज के संचालक से इजाजत लेनी चाहिए।
- अगर कोई शख्स अपनी रचना को लेकर ज्यादा ही गंभीर हो, तो यह छोटी सी चोरी आपको भारी पड़ सकती है। जिस गूगल के जरिये आपने वह लेख, फोटो या विडियो ढूंढा है, उसी के जरिये आपकी चोरी भी पकड़ी जा सकती है।

मजेदार साभार

- कुछ ब्लॉगों पर बड़ी दिलचस्प बातें नजर आती है। ब्लॉगरों ने गूगल इमेजेज से फोटो का इस्तेमाल किया और बतौर सावधानी नीचे साभार गूगल लिख दिया।
- गूगल पर दिखने वाले सर्च नतीजों, फोटो वगैरह पर गूगल का कोई मालिकाना हक नहीं है। वे तो महज रेफरेंस के तौर पर दिए गए हैं, जिससे आप सही ठिकाने तक पहुंच सकें।
- आभार ही जताना है तो उस वेबसाइट का जताइए, जहां से गूगल ने उसे ढूंढा है।

चाइल्ड पॉर्नोग्रफी देखना

- अगर आप जाने या अनजाने अपने इंटरनेट कनेक्शन के जरिये चाइल्ड पॉर्नोग्रफी (बच्चों के अश्लील चित्र, विडियो, लेख आदि) देखते हैं तो वह साइबर क्राइम है।
- आपने ऐसी किसी सामग्री को अपने किसी दोस्त को फॉरवर्ड कर दिया तो आप एक और साइबर क्राइम कर चुके हैं।
- 18 साल से कम उम्र वालों से संबंधित अश्लील सामग्री देखना, इंटरनेट से भेजना और सहेजना साइबर क्राइम है।
- इन्हें न खुद देखें, न किसी को फॉरवर्ड करें।

लोगो की चोरी

- इंटरनेट पर लोगो, आइकंस, प्रतीक चिह्नों, ट्रेडमार्क वगैरह की चोरी भी आम है।
- नया काम खोलना है या नई वेबसाइट बनानी है लोगो के लिए इंटरनेट सर्च से बेहतर जरिया क्या होगा?
- अच्छा सा लोगो दिखाई दिया और आपने उसे कॉपी कर इस्तेमाल कर लिया या किसी डिजाइनर की सेवा ली जिसने झटपट इंटरनेट से किसी कंपनी का अच्छा सा लोगो इस्तेमाल कर आपका विजिटिंग कार्ड, ब्रोशर और लेटरहेड तैयार कर दिया। ऐसा करके आपने न सिर्फ कॉपीराइट का उल्लंघन कर चुके हैं बल्कि ऑनलाइन ट्रेडमार्क के उल्लंघन मामले में भी आपको दोषी करार दिया जा सकता है।
- ऐसे किसी भी लोगो या आइकन का प्रयोग अपने बिजनेस आदि के लिए न करें।

वाई-फाई का दुरुपयोग

- जुलाई 2008 में अहमदाबाद बम विस्फोटों के बाद उनकी जिम्मेदारी लेते हुए आतंकवादियों ने जो ईमेल भेजा था, वह आपके-हमारे जैसे ही किसी आम इंटरनेट यूजर के वाई-फाई कनेक्शन का इस्तेमाल करके भेजा था। जांच एजेंसियों ने पता लगाया कि यह ईमेल नवी मुंबई के एक ?लैट में लगे वायरलेस इंटरनेट कनेक्शन के जरिये आया था। जाहिर है, उन्होंने यही निष्कर्ष निकाला कि जिस घर से मेल भेजा गया, वह किसी न किसी रूप में हमलावरों से जुड़ा हुआ होगा, लेकिन इस फ्लैट में रहता था मल्टिनैशनल कंपनी में काम करने वाला अमेरिकी नागरिक केनेथ हैवुड। अब उसे समझ आया कि इंटरनेट कनेक्शन लगाने वाले इंजिनियर ने क्यों कहा था कि उसे अपने वाई-फाई नेटवर्क का पासवर्ड जल्दी ही बदल लेना चाहिए। दरअसल, हैवुड के वाई-फाई कनेक्शन में कोई सिक्युरिटी सेटिंग नहीं की गई थी और आस-पास से गुजरता कोई भी शख्स हैवुड के कनेक्शन का इस्तेमाल कर सकता था। आतंकवादियों ने यही किया और हैवुड एक आतंकवादी मामले में गिरफ्तार होते-होते बचा।
- अगर कोई अपराधी आपके इंटरनेट कनेक्शन का इस्तेमाल करते हुए साइबर क्राइम करता है तो पुलिस उसे भले ही न ढूंढ पाए, आप तक जरूर पहुंच जाएगी और नतीजे भुगतने होंगे आपको।
- अगर वाई-फाई इंटरनेट कनेक्शन इस्तेमाल करते हैं तो उसे पासवर्ड प्रोटेक्ट करना और एनक्रिप्शन का इस्तेमाल करना न भूलें।

वायरस, स्पाईवेयर
- अगर आपके कंप्यूटर पर किसी वायरस या स्पाईवेयर ने कब्जा जमा लिया है और वह जोम्बी में तब्दील हो गया है तो समझिए, आप अपने कंप्यूटर और डेटा की असुरक्षा के साथ-साथ साइबर क्राइम में भी फंस सकते हैं। मुमकिन है, आप किसी परोक्ष साइबर क्राइम में हिस्सेदार बन रहे हों।
- कुछ वायरस और स्पाईवेयर न सिर्फ आपके कंप्यूटर के डेटा और निजी सूचनाएं चुराकर अपने संचालकों तक भेजते हैं बल्कि आपके संपर्क में मौजूद दूसरे लोगों तक अपनी प्रतियां पहुंचा देते हैं। कभी इंटरनेट के जरिये, कभी ईमेल के जरिये तो कभी लोकल नेटवर्क के जरिये। जिन लोगों के कंप्यूटर में आपके जरिये वायरस या स्पाईवेयर पहुंचा और कोई बड़ा नुकसान हो गया, उनकी नजर में दोषी कौन होगा? आप। ऐसे मामलों में आप अपनी कानूनी और नैतिक जिम्मेदारी से बच नहीं सकते।
- कंप्यूटर में अच्छा एंटिवायरस, एंटिस्पाईवेयर और फायरवॉल जरूर लगवाएं। ये सिर्फ आपकी साइबर सुरक्षा के लिहाज से ही जरूरी नहीं है बल्कि इसलिए भी है कि कहीं आप अनजाने में कोई साइबर अपराध न कर बैठें।

किसी का अकाउंट खोलना

- कुछ लोग अपने दोस्तों और साथियों के ईमेल अकाउंट, फेसबुक वगैरह का पासवर्ड ढूंढने की कोशिश करते हैं और कभी-कभी सफल भी हो जाते हैं। हो सकता है, आप महज मौज-मस्ती या मजाक के लिए ऐसा कर रहे हों लेकिन अगर आप किसी का पासवर्ड हासिल करने के बाद उसके खाते में लॉग-इन करते हैं तो आप साइबर क्राइम कर रहे हैं।
- ऐसा तब भी होता है, जब किसी ने आप पर भरोसा करके आपको अपना पासवर्ड बताया हो। यह खाता ईमेल, सोशल नेटवर्किंग, ब्लॉग, वेबसाइट, ऑनलाइन स्टोरेज सविर्स, ई-कॉमर्स साइट, इंटरनेट-बैंकिंग जैसा हो सकता है।
- किसी की प्राइवेसी में सेंध लगाने पर आप डेटा प्रोटेक्शन कानून के साथ-साथ सूचना प्रौद्योगिकी कानून 2000 की धारा 72 के तहत दोषी करार दिए जा सकते हैं।
- किसी का पासवर्ड चुराकर उसका अकाउंट खोलने की कोशिश न करें। साथ ही अगर कोई साथी कहे कि मेरा ईमेल खोलकर देख लेना, यह मेरा पासवर्ड यह है, तो उससे माफी मांग लेने में ही भलाई है।

सॉफ्टवेयर पायरेसी

- भारत के ज्यादातर कंप्यूटर यूजर किसी न किसी सॉफ्टवेयर का पाइरेटेड वर्जन इस्तेमाल कर रहे हैं। चाहे विंडोज ऑपरेटिंग सिस्टम हो, ऑफिस सॉफ्टवेयर सूइट हों या फिर ग्राफिक्स, पेजमेकिंग के सॉफ्टवेयर।
- अब सॉफ्टवेयरों के भीतर एडवांस किस्म के पाइरेसी प्रोटेक्शन और मॉनिटरिंग सिस्टम आने लगे हैं और हो सकता है आपके बारे में भी कंपनियों को जानकारी हो।
- ऐसे सॉफ्टवेयरों का इस्तेमाल करना साइबर क्राइम के तहत आता है। हमेशा ऑरिजनल सॉफ्टवेयर ही यूज करें।

गूगल क्लिक फ्रॉड

- इंटरनेट पर विज्ञापनों के बदले भुगतान की व्यवस्था थोड़ी अलग है। यह विज्ञापनों को क्लिक किए जाने की संख्या पर आधारित है। जैसे दस क्लिक यानी दो डॉलर या करीब 110 रुपये।
- ऐसे में कुछ लोग खुद ही अपने ब्लॉगों पर लगे विज्ञापनों को क्लिक करते रहते हैं या फिर कुछ दूसरे लोगों के साथ गठजोड़ कर लेते हैं। उन्हें पता नहीं कि इंटरनेट पर ऐसे फर्जी क्लिक की निगरानी रखी जा सकती है।
- इस तरह के क्लिक से बचें। यह बड़ा आर्थिक अपराध है और पता लगने पर आपके विज्ञापन तो बंद हो ही सकते हैं, भारी-भरकम जुर्माना या दूसरी सजा भी मिल सकती है।

बैंडविड्थ की चोरी

- कुछ लोग अपनी वेबसाइट पर दूसरी जगहों से ली गई भारी-भरकम ग्राफिक फाइलें (कुछ एमबी के फोटो या विडियो आदि) डालने के लिए शॉर्टकट अपनाते हैं।
- वे फाइलों को अपनी वेबसाइट पर सीधे नहीं डालते बल्कि ऑरिजनल वेबसाइट से ही उन्हें लिंक कर देते हैं। होता यह है कि विडियो या चित्र दिखता तो आपकी वेबसाइट पर है लेकिन असल में वह अपनी ऑरिजनल वेबसाइट पर ही लगा हुआ है, आपके वेब सर्वर पर नहीं है।
- यहां आप दो तरह के साइबर क्राइम कर रहे हैं। पहला कॉपीराइट संबंधी और दूसरा बैंडविड्थ की चोरी।
- बैंडविड्थ की चोरी को ऐसे समझ सकते हैं। हर वेबसाइट को डेटा डाउनलोड का एक खास कोटा मिला होता है और इस सीमा से बाहर जाने पर उसके संचालक को अलग से पैसे का भुगतान करना होता है। जब आप किसी और की साइट पर मौजूद भारी-भरकम विडियो को लिंक करके अपनी साइट पर लगाते हैं तो आपकी साइट पर आने वाले हर विजिटर के लिए वह विडियो ओरिजनल साइट से डाउनलोड होता है। डाउनलोड की इस प्रक्रिया में उसकी बैंडविड्थ खर्च होती है, जबकि आप अपनी बैंडविड्थ बचा लेते हैं।
- यह किसी अनजान व्यक्ति की जेब काटने जैसा है। हमेशा अपनी बैंडविड्थ ही खर्च करें, दूसरों की नहीं।

कुछ और साइबर क्राइम

- साइबर स्क्वैटिंग : किसी मशहूर ब्रैंड, कंपनी, संगठन, इंसान आदि के नाम से जुड़ा डोमेन नेम अनधिकृत रूप से अपने नाम से बुक करवा लेना।
- ऑनलाइन मानहानि : अपने ब्लॉग, वेबसाइट, सोशल नेटवकिर्ंग ठिकाने या दूसरे इंटरनेट ठिकाने पर किसी के बारे में अपमानजनक या अश्लील टिप्पणी करना।
- कारोबारी डेटा : किसी ग्राहक द्वारा मुहैया कराए जाने वाले गोपनीय कारोबारी डेटा की

कॉपी बनाकर अपने पास रखना।

- वेबसाइट, डोमेन नेम पर कब्जा : भारत में कई वेब डिवेलपमेंट कंपनियां ऐसा करने की दोषी पाई गई हैं। अपने ग्राहकों के लिए डोमेन नेम बुक कराते, वेब होस्टिंग स्पेस लेते और इंटरनेट सेवा मुहैया कराते समय वे उनका सबसे खास यूजरनेम और पासवर्ड अपने कब्जे में रख लेते हैं और फिर उसी के दम पर ग्राहकों को तंग करते हैं।
- डिजाइन की चोरी : किसी वेबसाइट, ब्लॉग, ई-बुक आदि की बिना मंजूरी हू-ब-हू नकल कर लेना। किसी की टेंप्लेट को अनधिकृत रूप से इस्तेमाल कर लेना।