दिल्ली का इतिहास
इंद्रप्रस्थ में थी पांडवों की राजधानी
दिल्ली का इतिहास महाभारतकाल से शुरू होता है। पुराने किले के पास इंद्रपत नाम का गांव था। माना जाता है कि पांडवों की राजधानी इंद्रप्रस्थ वहीं थी। इंद्रप्रस्थ की नींव पर ही मुगल शासक हुमायूं ने पुराना किला बनवाया था। नीली छतरी और निगमबोध इलाके में भी इंद्रप्रस्थ से जुड़े कुछ साक्ष्य हैं।
पहला शहर लालकोट जिसे तोमर राजा ने बसाया
दस्तावेजी इतिहास में दिल्ली के बारे में पहला जिक्र 737 ईसवीं में मिलता है। तब राजा अनंगपाल तोमर ने इंद्रप्रस्थ से 10 मील दक्षिण में अनंगपुर बसाया। यहां दिल्ली का गांव था। कुछ बरस बाद उस पर राजा ने लालकोट नगरी बसाई। लेकिन दिल्ली का गांव का नाम चलता रहा। कहा जाता है कि हुमायूं ने बाद में इसी नींव पर पुराना किला बनवाया। 1180 में चौहान राजा पृथ्वीराज तृतीय ने किला राय पिथौरा बनाया। किले के अंदर ही कस्बा बसता था। दीवारें 6 मीटर तक चौड़ी और 18 मीटर तक ऊंची थीं। लेकिन मोहम्मद गोरी ने उन्हें हरा दिया और भारत में तुर्कों की एंट्री हो गई।
दूसरा शहर
मोहम्मद गोरी के बेटे शहाबुद्दीन ने गद्दी संभालने के बाद अपने भरोसेमंद सेनापति कुतुबुद्दीन ऐबक को कमान सौंप दी। ऐबक ने 1206 में दिल्ली से तख्त शुरू किया। उसने कुतुब महरौली बसाई। यह दिल्ली का दूसरा शहर था। चार साल बाद ऐबक की घोड़े से गिरकर मौत हो गई। ऐबक का दामाद इल्तुतमिश दिल्ली का सुल्तान बन गया। बाद में उसकी बेटी रजिया सुल्तान दिल्ली की शासक बनी।
तीसरे शहर सिरी में खिलजी ने किए सारे इंतजाम
रजिया सुल्तान के बाद कुतुब की सल्तनत खत्म हो गई। 1296 में अलाउद्दीन खिलजी गद्दी पर बैठा। उसने सोना लुटाते हुए दिल्ली में प्रवेश किया। मंगोल शासकों ने जब हमला किया तब खिलजी ने उसके सैनिकों के सिर कलम कर दीवारों में चुनवा दिए थे। इस वजह से उसके किले का नाम सिरी पड़ा। खिलजी ने रेवेन्यू सिस्टम बनाया। फौज और बाजारों पर उसका ध्यान था। अस्पताल भी बनवाए। इन कामों में लगे लोग सिरी फोर्ट के अंदर ही रहते थे। किले के अंदर ही पूरे शहर के लिए इंतजाम थे। यह दिल्ली का तीसरा शहर था।
चौथा शहर
खिलजी कमजोर हुए तो 1320 में तुगलक दिल्ली में आ जमे। गयासुद्दीन तुगलक ने तुगलकाबाद किले और गयासपुर के आसपास शहर बसाया। यह चौथा शहर था। यह दौर तुगलक से ज्यादा मशहूर सूफी निजामुद्दीन औलिया और उनके शागिर्द अमीर खुसरो की वजह से जाना गया। औलिया तो महबूब-ए-इलाही कहलाए। वहीं, खुसरो ब्रजभाषा को अरबी-फारसी में पिरोकर हिंदवी जुबान को रंगते रहे। उन्होंने बंदिशें लिखीं। राग गढ़े। सितार और तबले जैसे साज़ बनाए। दिलचस्प पहेलियों वाले सुखन लिखे। कव्वाली भी शुरू कराई। औलिया ने तुगलक वंश के सात और खुसरो ने पांच सुल्तानों को देखा।
पांचवां शहर था फिरोजशाह कोटला
गयासुद्दीन तुगलक के बाद मोहम्मद बिन तुगलक सुल्तान बना। वह राजधानी को कुछ दिन दौलताबाद ले जाने के बाद दिल्ली लौट आया। उसके बाद उसके चाचा सुल्तान फिरोजशाह तुगलक गद्दी पर बैठे। फिरोजशाह ने यमुना के किनारे कोटला बसाया। यहां 18 गांव थे। 10 हमाम, 150 कुएं थे। उसने 30 महल बनवाए। कुतुब मीनार को दुरुस्त कराया। पांच नहरें बनाईं। 1388 में उसका निधन हुआ।
तैमूर ने दिल्ली को तीन दिन-तीन रात तक लूटा
तैमूर लंग ने 1398 में दिल्ली पर हमला किया। तीन दिन-तीन रात तक लूटपाट हुई। फिरोजशाह के शानदार शहर को खंडहर बना दिया गया। हजारों लोगों के सिर कलम कर दिए गए। लेकिन तैमूर ज्यादा वक्त नहीं टिक पाया। लाेदियों ने उसे खदेड़ दिया। बहलोल और सिकंदर के बाद इब्राहिम लोदी ने दिल्ली को बसाया और खूबसूरत बनाया। लेकिन शहर फिरोजशाह के आसपास का ही रहा।
छठा शहर
इब्राहिम लोदी को मुगलों के संस्थापक बाबर ने हरा दिया। लोदी जंग में मारा गया। बाबर आगे बढ़ गया लेकिन मुगलों के लोग वहां जमे रहे। बाबर ने आगरा को राजधानी बनाया लेकिन उसकी मौत के बाद हुमायूं दिल्ली आ गया। पुराने किले के आसपास के शहर को हुमायूं ने दीन पनाह नाम दिया। 1539 में शेर शाह सूरी ने हुमायूं को जंग में खदेड़ दिया और दीनपनाह को शेरगढ़ बना दिया। बंगाल से पेशावर तक सड़क उसी ने बनवाई थी जो बाद में ग्रैंड ट्रंक रोड कहलवाई। रुपया भी सूरी ने ही चलाया था।
सातवां शहर
शेर शाह सूरी की 1545 में मौत हो गई। 1555 में हुमायूं फिर दिल्ली आया। शेरगढ़ को फिर दीनपनाह बना दिया। सात महीने बाद उसकी मौत हो गई। हुमायूं के बेटे अकबर ने राजधानी आगरा में बनाई। जहांगीर और शाहजहां के समय भी आगरा ही मुगलों की राजधानी रही। लेकिन
शाहजहां ने बाद में दिल्ली का रुख किया और यमुना किनारे शाहजहानाबाद की नींव रखी। यह दिल्ली का सातवां शहर था। उसी ने 1638 में लाल किला बनवाया। 46 लाख रुपए में अपना तख्त-ए-ताऊस बनवाया। जामा मस्जिद बनवाई। चांदनी चौक बसा। मीना बाजार बना।
1739 में दिल्ली में हुआ कत्ल-ए-आम
मुगल शासक मोहम्मद शाह के वक्त ईरान से आए नादिर शाह ने दिल्ली पर हमला कर दिया। वह तख्त-ए-ताऊस भी अपने साथ ले गया। उसकी मचाई मारकाट में दिल्ली के 30 हजार लोग मारे गए। इसके बाद ईस्ट इंडिया कंपनी की एंट्री हुई।
अंग्रेज मजबूत होते गए और दिल्ली के मुगल शासक सिमटते गए। 1803 में दिल्ली भी अंग्रेजों के नियंत्रण में आ गई। 1857 की क्रांति में आखिरी मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर को ही नेता घोषित किया गया। उन्होंने लिखा- गाजियों में बू रहेगी जब तलक ईमान की, तख्ते लंदन तक चलेगी तेग हिंदुस्तान की। लेकिन जफर को गिरफ्तार कर लिया गया। उनके दो बेटों का कत्ल कर दिया गया। दिल्ली में अंग्रेजों ने कत्ल-ए-आम किया। बिल्कुल नादिर शाह की तरह। जफर को अंग्रेज रंगून ले गए। मौत के बाद उन्हें वहीं दफन कर दिया गया।
यह दिल्ली के बसने का आखिरी दौर था जो 1911 से शुरू हुआ और नई दिल्ली कहलाया। इसके लिए दिल्ली दरबार बुराड़ी में सजाया गया। राजाओं को न्योता दिया गया। हजारों लोगों के ठहरने और खाने-पीने के चंद दिनों के इंतजाम लिए बुराड़ी में अस्थायी शहर बस गया। दिल्ली रोशनी से जगमगा उठी। जॉर्ज पंचम और क्वीन मैरी की सवारी चांदनी चौक से गुजरी। दिल्ली दरबार में आकर जॉर्ज पंचम ने दिल्ली को राजधानी बनाने का ऐलान कर सभी राजाओं को चौंका दिया। इसके बाद एडविन लुटियंस ने शानदार इमारतें बनाईं। इनमें वाइसराय हाउस यानी राष्ट्रपति भवन और इंडिया गेट शामिल है। इसे 29 हजार मजदूरों ने बनाया। शाही इमारतों के लिए धौलपुर, भरतपुर और आगरा से पत्थर मंगवाए गए। पत्थर ढोने के लिए अलग रेल लाइनें बनाई गईं। हर्बर्ट बेकर ने संसद भवन बनवाया।
इंद्रप्रस्थ में थी पांडवों की राजधानी
दिल्ली का इतिहास महाभारतकाल से शुरू होता है। पुराने किले के पास इंद्रपत नाम का गांव था। माना जाता है कि पांडवों की राजधानी इंद्रप्रस्थ वहीं थी। इंद्रप्रस्थ की नींव पर ही मुगल शासक हुमायूं ने पुराना किला बनवाया था। नीली छतरी और निगमबोध इलाके में भी इंद्रप्रस्थ से जुड़े कुछ साक्ष्य हैं।
पहला शहर लालकोट जिसे तोमर राजा ने बसाया
दस्तावेजी इतिहास में दिल्ली के बारे में पहला जिक्र 737 ईसवीं में मिलता है। तब राजा अनंगपाल तोमर ने इंद्रप्रस्थ से 10 मील दक्षिण में अनंगपुर बसाया। यहां दिल्ली का गांव था। कुछ बरस बाद उस पर राजा ने लालकोट नगरी बसाई। लेकिन दिल्ली का गांव का नाम चलता रहा। कहा जाता है कि हुमायूं ने बाद में इसी नींव पर पुराना किला बनवाया। 1180 में चौहान राजा पृथ्वीराज तृतीय ने किला राय पिथौरा बनाया। किले के अंदर ही कस्बा बसता था। दीवारें 6 मीटर तक चौड़ी और 18 मीटर तक ऊंची थीं। लेकिन मोहम्मद गोरी ने उन्हें हरा दिया और भारत में तुर्कों की एंट्री हो गई।
दूसरा शहर
मोहम्मद गोरी के बेटे शहाबुद्दीन ने गद्दी संभालने के बाद अपने भरोसेमंद सेनापति कुतुबुद्दीन ऐबक को कमान सौंप दी। ऐबक ने 1206 में दिल्ली से तख्त शुरू किया। उसने कुतुब महरौली बसाई। यह दिल्ली का दूसरा शहर था। चार साल बाद ऐबक की घोड़े से गिरकर मौत हो गई। ऐबक का दामाद इल्तुतमिश दिल्ली का सुल्तान बन गया। बाद में उसकी बेटी रजिया सुल्तान दिल्ली की शासक बनी।
तीसरे शहर सिरी में खिलजी ने किए सारे इंतजाम
रजिया सुल्तान के बाद कुतुब की सल्तनत खत्म हो गई। 1296 में अलाउद्दीन खिलजी गद्दी पर बैठा। उसने सोना लुटाते हुए दिल्ली में प्रवेश किया। मंगोल शासकों ने जब हमला किया तब खिलजी ने उसके सैनिकों के सिर कलम कर दीवारों में चुनवा दिए थे। इस वजह से उसके किले का नाम सिरी पड़ा। खिलजी ने रेवेन्यू सिस्टम बनाया। फौज और बाजारों पर उसका ध्यान था। अस्पताल भी बनवाए। इन कामों में लगे लोग सिरी फोर्ट के अंदर ही रहते थे। किले के अंदर ही पूरे शहर के लिए इंतजाम थे। यह दिल्ली का तीसरा शहर था।
चौथा शहर
खिलजी कमजोर हुए तो 1320 में तुगलक दिल्ली में आ जमे। गयासुद्दीन तुगलक ने तुगलकाबाद किले और गयासपुर के आसपास शहर बसाया। यह चौथा शहर था। यह दौर तुगलक से ज्यादा मशहूर सूफी निजामुद्दीन औलिया और उनके शागिर्द अमीर खुसरो की वजह से जाना गया। औलिया तो महबूब-ए-इलाही कहलाए। वहीं, खुसरो ब्रजभाषा को अरबी-फारसी में पिरोकर हिंदवी जुबान को रंगते रहे। उन्होंने बंदिशें लिखीं। राग गढ़े। सितार और तबले जैसे साज़ बनाए। दिलचस्प पहेलियों वाले सुखन लिखे। कव्वाली भी शुरू कराई। औलिया ने तुगलक वंश के सात और खुसरो ने पांच सुल्तानों को देखा।
पांचवां शहर था फिरोजशाह कोटला
गयासुद्दीन तुगलक के बाद मोहम्मद बिन तुगलक सुल्तान बना। वह राजधानी को कुछ दिन दौलताबाद ले जाने के बाद दिल्ली लौट आया। उसके बाद उसके चाचा सुल्तान फिरोजशाह तुगलक गद्दी पर बैठे। फिरोजशाह ने यमुना के किनारे कोटला बसाया। यहां 18 गांव थे। 10 हमाम, 150 कुएं थे। उसने 30 महल बनवाए। कुतुब मीनार को दुरुस्त कराया। पांच नहरें बनाईं। 1388 में उसका निधन हुआ।
तैमूर ने दिल्ली को तीन दिन-तीन रात तक लूटा
तैमूर लंग ने 1398 में दिल्ली पर हमला किया। तीन दिन-तीन रात तक लूटपाट हुई। फिरोजशाह के शानदार शहर को खंडहर बना दिया गया। हजारों लोगों के सिर कलम कर दिए गए। लेकिन तैमूर ज्यादा वक्त नहीं टिक पाया। लाेदियों ने उसे खदेड़ दिया। बहलोल और सिकंदर के बाद इब्राहिम लोदी ने दिल्ली को बसाया और खूबसूरत बनाया। लेकिन शहर फिरोजशाह के आसपास का ही रहा।
छठा शहर
इब्राहिम लोदी को मुगलों के संस्थापक बाबर ने हरा दिया। लोदी जंग में मारा गया। बाबर आगे बढ़ गया लेकिन मुगलों के लोग वहां जमे रहे। बाबर ने आगरा को राजधानी बनाया लेकिन उसकी मौत के बाद हुमायूं दिल्ली आ गया। पुराने किले के आसपास के शहर को हुमायूं ने दीन पनाह नाम दिया। 1539 में शेर शाह सूरी ने हुमायूं को जंग में खदेड़ दिया और दीनपनाह को शेरगढ़ बना दिया। बंगाल से पेशावर तक सड़क उसी ने बनवाई थी जो बाद में ग्रैंड ट्रंक रोड कहलवाई। रुपया भी सूरी ने ही चलाया था।
सातवां शहर
शेर शाह सूरी की 1545 में मौत हो गई। 1555 में हुमायूं फिर दिल्ली आया। शेरगढ़ को फिर दीनपनाह बना दिया। सात महीने बाद उसकी मौत हो गई। हुमायूं के बेटे अकबर ने राजधानी आगरा में बनाई। जहांगीर और शाहजहां के समय भी आगरा ही मुगलों की राजधानी रही। लेकिन
शाहजहां ने बाद में दिल्ली का रुख किया और यमुना किनारे शाहजहानाबाद की नींव रखी। यह दिल्ली का सातवां शहर था। उसी ने 1638 में लाल किला बनवाया। 46 लाख रुपए में अपना तख्त-ए-ताऊस बनवाया। जामा मस्जिद बनवाई। चांदनी चौक बसा। मीना बाजार बना।
1739 में दिल्ली में हुआ कत्ल-ए-आम
मुगल शासक मोहम्मद शाह के वक्त ईरान से आए नादिर शाह ने दिल्ली पर हमला कर दिया। वह तख्त-ए-ताऊस भी अपने साथ ले गया। उसकी मचाई मारकाट में दिल्ली के 30 हजार लोग मारे गए। इसके बाद ईस्ट इंडिया कंपनी की एंट्री हुई।
अंग्रेज मजबूत होते गए और दिल्ली के मुगल शासक सिमटते गए। 1803 में दिल्ली भी अंग्रेजों के नियंत्रण में आ गई। 1857 की क्रांति में आखिरी मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर को ही नेता घोषित किया गया। उन्होंने लिखा- गाजियों में बू रहेगी जब तलक ईमान की, तख्ते लंदन तक चलेगी तेग हिंदुस्तान की। लेकिन जफर को गिरफ्तार कर लिया गया। उनके दो बेटों का कत्ल कर दिया गया। दिल्ली में अंग्रेजों ने कत्ल-ए-आम किया। बिल्कुल नादिर शाह की तरह। जफर को अंग्रेज रंगून ले गए। मौत के बाद उन्हें वहीं दफन कर दिया गया।
यह दिल्ली के बसने का आखिरी दौर था जो 1911 से शुरू हुआ और नई दिल्ली कहलाया। इसके लिए दिल्ली दरबार बुराड़ी में सजाया गया। राजाओं को न्योता दिया गया। हजारों लोगों के ठहरने और खाने-पीने के चंद दिनों के इंतजाम लिए बुराड़ी में अस्थायी शहर बस गया। दिल्ली रोशनी से जगमगा उठी। जॉर्ज पंचम और क्वीन मैरी की सवारी चांदनी चौक से गुजरी। दिल्ली दरबार में आकर जॉर्ज पंचम ने दिल्ली को राजधानी बनाने का ऐलान कर सभी राजाओं को चौंका दिया। इसके बाद एडविन लुटियंस ने शानदार इमारतें बनाईं। इनमें वाइसराय हाउस यानी राष्ट्रपति भवन और इंडिया गेट शामिल है। इसे 29 हजार मजदूरों ने बनाया। शाही इमारतों के लिए धौलपुर, भरतपुर और आगरा से पत्थर मंगवाए गए। पत्थर ढोने के लिए अलग रेल लाइनें बनाई गईं। हर्बर्ट बेकर ने संसद भवन बनवाया।
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