Tuesday, 7 January 2014

Nuclear power in India भारत में परमाणु उर्जा

Nuclear power in India भारत में परमाणु उर्जा

परमाणु ऊर्जा की भारतीय विद्युत उत्पादन एवं आपूर्ति के क्षेत्र में एक निश्चित एवं निर्णायक भूमिका है । विकासशील देश होने के कारण भारत की सम्पूर्ण विद्युत आवश्यकताओं का एक बड़ा भाग गौर पारम्परिक स्रोतों से पूरा किया जाता है क्योंकि पारम्परिक स्रोतों द्वारा बढ़ती हुई आवश्यकताओं को पूरा नहीं किया जा सकता । भारत ने नाभिकीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता प्राप्त की है । इसका श्रेय डॉ. होमी भाभा द्वारा प्रारंभ किए गए महत्वपूर्ण प्रयासों को जाता है जिन्होंने भारतीय नाभिकीय कार्यक्रम की कल्पना करते हुए इसकी आधारशिला रखी । तब से ही परमाणु ऊर्जा विभाग परिवार के समर्पित वौज्ञानिकों तथा इंजीनियरों द्वारा बड़ी सतर्कता के साथ इसे आगे बढ़ाया गया है । किसी भी राष्ट्र के सम्पूर्ण विकास के लिए विद्युत की पर्याप्त तथा अबाधित आपूर्ति का होना आवश्यक है । विद्युत की मात्रा के संदर्भ में कहें तो किसी राष्ट्र के सामाजिक-आर्थिक विकास का पौमाना वहां प्रति व्यक्ति विद्युत खपत की दर से आंका जाता है ।
भारत के विद्युत उत्पादन का बड़ा भाग निम्नलिखित से प्राप्त होता है
कोयला आधारित ताप बिजलीघरों से (2002 में 58,000 मेगावाट, कुल विद्युत उत्पादन का लगभग 67%)

जल विद्युत उत्पादन द्वारा

गौर पारंपारिक स्रोतों (नाभिकीय, वायु, ज्वारीय तरंगों आदि) से

भारत में प्रति व्यक्ति विद्युत की खपत लगभग 400 किलोवाट घंटा/वर्ष है जो कि विश्व की औसत खपत 2400 किलो वाट घंटा /वर्ष से काफी कम है । अत: आने वाले वर्षों में सकल राष्ट्रीय दर को बढ़ा कर उसे विश्व औसत के बराबर लाने के लिए हमें विद्युत के उत्पादन में बहुत वृद्धि करनी होगी ।
भारत में कोयले के अनुमानित भंडार 206 अरब टन हैं (यह विश्व के कुल कोयले भंडार का लगभग 6% है) तथा भारत में परम्परागत ऊर्जा स्रोतों का वितरण निम्नलिखित है :-

कोयला- 68% , भूरा कोयला-5.6 % पौट्रोलियम - 20%, प्राकृतिक गौसें- 5.6%

ऊर्जा की बढ़ती हुई माँग को देखते हुए यह पर्याप्त नहीं है और इसके अलावा भारतीय कोयले में सल्फर और राख की उच्च मात्रा होने के कारण इससे पर्यावरण समस्याएं उत्पन्न होती हैं ।

जल विद्युत उत्पादन क्षमता सीमित है और यह अनिश्चित मानसून पर निर्भर करती है ।

विद्युत उत्पादन के संदर्भ में किसी महत्वाकांक्षी लक्ष्य को प्राप्त करने में हमारे परम्परागत स्रोत अपर्याप्त हैं। समाप्त होते कोयले के भण्डार जल विद्युत की सीमित क्षमता के चलते नाभिकीय एवं अन्य गौर-परम्परागत स्रोतों के दोहन के द्वारा ही भविष्य में राष्ट्र की विद्युत आवश्यताएं पूरी की जा सकती हैं। गौर परम्परागत स्रोतों में भारी क्षमता है और हमें इनका दोहन करना चाहिए ।
अपनी प्रकृति के कारण जहाँ अन्य गौर परम्परागत स्रोत लघु विकेन्द्रित अनुप्रयोगों के लिए उपयुक्त हैं वहीं नाभिकीय बिजलीघर बृहत केन्द्रीय उत्पादन केन्द्रों के लिए उपयुक्त हैं ।

No comments:

Post a Comment