Tuesday, 1 December 2015

what is climate change (जलवायु परिवर्तन है क्या?)


जलवायु परिवर्तन है क्या?

पृथ्वी का औसत तापमान अभी लगभग 15 डिग्री सेल्सियस है, हालाँकि भूगर्भीय प्रमाण बताते हैं कि पूर्व में ये बहुत अधिक या कम रहा है. लेकिन अब पिछले कुछ वर्षों में जलवायु में अचानक तेज़ी से बदलाव हो रहा है.

मौसम की अपनी खासियत होती है, लेकिन अब इसका ढंग बदल रहा है. गर्मियां लंबी होती जा रही हैं, और सर्दियां छोटी. पूरी दुनिया में ऐसा हो रहा है. यही है जलवायु परिवर्तन.

अब सवाल उठता है कि आखिर ऐसा हो क्यों रहा है. जवाब भी किसी से छिपा नहीं है और अक्सर लोगों की जुबां पर होता है ‘ग्रीन हाउस इफेक्ट’.
क्या है ग्रीन हाउस इफेक्ट?

पृथ्वी का वातावरण जिस तरह से सूर्य की कुछ ऊर्जा को ग्रहण करता है, उसे ग्रीन हाउस इफेक्ट कहते हैं. पृथ्वी के चारों ओर ग्रीन हाउस गैसों की एक परत होती है. इन गैसों में कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड शामिल हैं.

ये परत सूर्य की अधिकतर ऊर्जा को सोख लेती है और फिर इसे पृथ्वी की चारों दिशाओं में पहुँचाती है.

जो ऊर्जा पृथ्वी की सतह तक पहुँचती है, उसके कारण पृथ्वी की सतह गर्म रहती है. अगर ये सतह नहीं होती तो धरती 30 डिग्री सेल्सियस ज़्यादा ठंडी होती. मतलब साफ है कि अगर ग्रीनहाउस गैसें नहीं होतीं तो पृथ्वी पर जीवन नहीं होता.

वैज्ञानिकों का मानना है कि हम लोग उद्योगों और कृषि के जरिए जो गैसे वातावरण में छोड़ रहे हैं (जिसे वैज्ञानिक भाषा में उत्सर्जन कहते हैं), उससे ग्रीन हाउस गैसों की परत मोटी होती जा रही है.

ये परत अधिक ऊर्जा सोख रही है और धरती का तापमान बढ़ा रही है. इसे आमतौर पर ग्लोबल वार्मिंग या जलवायु परिवर्तन कहा जाता है.Image copyrightEric Guth

इनमें सबसे ख़तरनाक है कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा का बढ़ना. कार्बन डाइऑक्साइड तब बनती है जब हम ईंधन जलाते हैं. मसलन- कोयला.

जंगलों की कटाई ने इस समस्या को और बढ़ाया है. जो कार्बन डाइऑक्साइड पेड-पौधे सोखते थे, वो भी वातावरण में घुल रही है. मानवीय गतिविधियों से दूसरी ग्रीनहाउस गैसों मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड का उत्सर्जन भी बढ़ा है, लेकिन कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में इनकी मात्रा बहुत कम है.

1750 में औद्योगिक क्रांति के बाद कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर 30 प्रतिशत से अधिक बढ़ा है. मीथेन का स्तर 140 प्रतिशत से अधिक बढ़ा है. वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर आठ लाख वर्षों के सर्वोच्च स्तर पर है.
तापमान बढ़ने के सबूत क्या हैं?Image copyrightReuters

उन्नीसवीं सदी के तापमान के आंकड़े बताते हैं कि पिछले 100 साल में पृथ्वी का औसत तापमान 0.8 डिग्री सेल्सियस बढ़ा. इस तापमान का 0.6 डिग्री सेल्सियस तो पिछले तीन दशकों में ही बढ़ा है.

उपग्रह से प्राप्त आंकड़े बताते हैं कि पिछले कुछ दशकों में समुद्र के जल स्तर में सालाना 3 मिलीमीटर की बढ़ोतरी हुई है. सालाना 4 प्रतिशत की रफ़्तार से ग्लेशियर पिघल रहे हैं.

जलवायु परिवर्तन का असर मनुष्यों के साथ साथ वनस्पतियों और जीव जंतुओं पर देखने को मिल सकता है. पेड़ पौधों पर फूल और फल समय से पहले लग सकते हैं और जानवर अपने क्षेत्रों से पलायन कर दूसरी जगह जा सकते हैं.
भविष्य में कितना बढ़ेगा तापमानImage copyrightThinkstock

2013 में जलवायु परिवर्तन पर एक अंतरराष्ट्रीय समिति ने कंप्यूटर मॉडलिंग के आधार पर संभावित हालात का पूर्वानुमान लगाया था.

उनमें से एक अनुमान सबसे अहम था कि वर्ष 1850 की तुलना में 21वीं सदी के अंत तक पृथ्वी का तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाएगा.

यहाँ तक कि अगर हम ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में अभी भारी कटौती कर भी लें तब भी जलवायु परिवर्तन के प्रभाव दिखते रहेंगे, खासकर हिमखंडों और ग्लेशियर्स पर.
जलवायु परिवर्तन का हम पर क्या असर?

असल में कितना असर होगा इस बारे में निश्चित तौर पर कुछ कहना तो मुश्किल है. लेकिन इससे पीने के पानी की कमी हो सकती है, खाद्यान्न उत्पादन में कमी आ सकती है, बाढ़, तूफ़ान, सूखा और गर्म हवाएं चलने की घटनाएं बढ़ सकती हैं.

जलवायु परिवर्तन का सबसे ज़्यादा असर ग़रीब मुल्कों पर पड़ सकता है. इंसानों और जीव जंतुओं कि ज़िंदगी पर असर पड़ेगा. ख़ास तरह के मौसम में रहने वाले पेड़ और जीव-जंतुओं के विलुप्त होने का ख़तरा बढ़ जाएगा.

Wednesday, 25 November 2015

26 November Indian constitution day (26 नवंबर को संविधान दिवस)



सरकार ने 26 नवंबर को संविधान दिवस घोषित किया है. आज हमारा संविधान 65 साल का हो गया है. जानिए इससे जुड़ी खास बातें:

1. देश का सर्वोच्‍च कानून हमारा संविधान 26 नवंबर, 1949 में अंगीकार किया गया था.

2. संविधान सभा को इसे तैयार करने में दो साल, 11 महीने और 17 दिन का समय लगा.


3. संविधान सभा पर अनुमानित खर्च 1 करोड़ रुपये आया था.

4. मसौदा लिखने वाली समिति ने संविधान हिंदी, अंग्रेजी में हाथ से लिखकर कैलिग्राफ किया था और इसमें कोई टाइपिंग या प्रिंटिंग शामिल नहीं थी.

5. संविधान सभा के सदस्य भारत के राज्यों की सभाओं के निर्वाचित सदस्यों के द्वारा चुने गए थे. जवाहरलाल नेहरू, डॉ भीमराव अम्बेडकर, डॉ राजेन्द्र प्रसाद, सरदार वल्लभ भाई पटेल, मौलाना अबुल कलाम आजाद आदि इस सभा के प्रमुख सदस्य थे.

6. 11 दिसंबर 1946 को संविधान सभा की बैठक में डॉ. राजेंद्र प्रसाद को स्थायी अध्यक्ष चुना गया, जो अंत तक इस पद पर बने रहें.

7. इसमें अब 465 अनुच्छेद, तथा 12 अनुसूचियां हैं और ये 22 भागों में विभाजित है. इसके निर्माण के समय मूल संविधान में 395 अनुच्छेद, जो 22 भागों में विभाजित थे इसमें केवल 8 अनुसूचियां थीं.

8. संविधान की धारा 74 (1) में यह व्‍यवस्‍था की गई है कि राष्‍ट्रपति की सहायता को मंत्रिपरिषद् होगी जिसका प्रमुख पीएम होगा.

9. हमारा संविधान विश्‍व का सबसे लंबा लिखित संविधान है.

10. आज से ठीक 66 वर्ष पहले भारतीय संविधान तैयार करने एवं स्वीकारने के बाद से इसमें पूरे 100 संशोधन किए जा चुके हैं.

Tuesday, 6 October 2015

The Nobel Prize in Physics 2015



The Nobel Prize in Physics 2015

Takaaki Kajita, Arthur B. McDonald

Takaaki Kajita
Super-Kamiokande Collaboration
University of Tokyo, Kashiwa, Japan


and

Arthur B. McDonald
Sudbury Neutrino Observatory Collaboration
Queen’s University, Kingston, Canada

“for the discovery of neutrino oscillations, which shows that neutrinos have mass”

Monday, 5 October 2015

Nobel prize in medicine 2015 चिकित्सा के क्षेत्र में साल 2015 का नोबेल पुरस्कार

Nobel prize in medicine चिकित्सा के क्षेत्र में साल 2015 का नोबेल पुरस्कार
चिकित्सा के क्षेत्र में साल 2015 का नोबेल पुरस्कार आयरलैंड में जन्मे विलियम कैंपबेल, चीन की तू योउयोउ व जापान के संतोषी ओम्यूरा ने जीता है. समाचार एजेंसी सिन्हुआ की एक रपट के मुताबिक, नोबेल एसेंबली ने स्वीडन के कैरोलिंस्का इंस्टीट्यूट में सोमवार को यह घोषणा की.
तू योउयोउ:
30 दिसंबर, 1930 को जन्मी चीनी चिकित्सा विज्ञानी तथा शिक्षक तू योउयोउ को सबसे ज्‍यादा मलेरिया के खिलाफ कारगर दवा की खोज के लिए जाना जाता है. उन्‍हें अपने कार्यों के लिए 2011 का Lasker Award से नवाजा जा चुका है.
संतोषी ओम्यूरा:
जापानी बायोकैमिस्ट संतोषी ओम्यूरा का जन्म 12 जुलाई, 1935 को हुआ था. उन्हें दवाओं के क्षेत्र में कई माइक्रोऑर्गेनिज्‍म विकसित करने के लिए जाना जाता है. उन्‍हें यह पुरस्‍कार संक्रमणों के खिलाफ नई उपचार पद्धति विकसित करने के लिए मिला है.
विलियम कैंपबेल:
1930 में जन्‍मी आयरिश बायोकैमिस्ट विलियम सी. कैम्पबेल, ने ग्रेजुएशन डबलिन (आयरलैंड) के ट्रिनिटी कॉलेज और पीएचडी यूनिवर्सिटी ऑफ विस्कॉन्सिन से पूरी की. वर्ष 1957 से 1990 तक वह मर्क इंस्टीट्यूट ऑफ थैराप्यूटिक रिसर्च से जुड़े रहे.

Thursday, 24 September 2015

सिलिकॉन वैली का टॉप टैलेंट भारतीय ही क्यों?


सिलिकॉन वैली का टॉप टैलेंट भारतीय ही क्यों?

इस दौरान वे सिलिकॉन वैली में काम करने वाले भारतीय पेशेवरों से मिलेंगे और उन्हें संबोधित भी करेंगे. दरअसल बीते कुछ सालों में अमरीका की सूचना और तकनीक की दुनिया में भारतीयों का दबदबा काफी बढ़ा है.

इंटरनेट की दुनिया की सबसे बड़ी कंपनियों में एक गूगल के सीईओ सुंदर पिचाई भारतीय मूल हैं. पहली बार कोई भारतीय गूगल में शीर्ष पद तक पहुंचा है लेकिन हकीकत ये भी है कि गूगल का शुरुआत से ही भारत से नाता रहा है.

1998 में स्टैंफर्ड यूनिवर्सिटी में सर्जेइ ब्रिन और लैरी पेज ने अपने शिक्षक टैरी विनोग्रैड और राजीव मोटवानी के साथ गूगल की परिकल्पना विकसित की थी. भारत के मोटवानी को गूगल का सबसे पहला कर्मचारी माना जाता है.
शिखर पर सुंदर पिचाई

मोटवानी और पिचाई दोनों इंडियन इंस्टीच्यूट ऑफ़ टेक्नालॉजी (आईआईटी) से निकले और गूगल में शीर्ष स्तर की जिम्मेदारियों को बखूबी निभाया है.

वैसे ये बात केवल सुंदर पिचाई और मोटवानी तक ही सीमित नहीं है, बल्कि अमरीका की तकनीकी दुनिया में भारतीयों की मौजूदगी लगातार बढ़ रही है.

अमरीका में लगभग एक तिहाई स्टार्ट अप भारतीय लाँच कर रहे हैं. इतने स्टार्टअप वहां रह रहे दूसरे सात ग़ैर-अमरीकी समुदाय मिलकर भी लाँच नहीं कर पा रहे हैं.

2011 के आंकड़ों के मुताबिक, अमरीका में भारतीय समुदाय सबसे ज़्यादा औसत सालाना आमदनी वाला समूह है. अमरीका में रह रहे भारतीय साल में 86,135 डॉलर कमाते हैं जबकि अमरीका की औसत आय 51,914 डॉलर सालाना है.

हालांकि भारतीय समुदाय को यहां तक पहुंचने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा है. अब पिचाई का ही उदाहरण देखिए.

चेन्नई के एक इंजीनियर के बेटे पिचाई जब अमरीका गए तो हवाई टिकट उनके पिता के सालाना वेतन के बराबर था. पैसे की तंगी की वजह से वे छह महीने तक अपनी होने वाली पत्नी को फ़ोन नहीं कर पाए थे.

2004 में गूगल से जुड़ने से पहले पिचाई मैनेजमेंट कंसल्टेंट के तौर पर मैकेंजी और माइक्रोप्रोसेसर सप्लायर एप्लायड मैटेरियल्स के साथ कम कर चुके थे. गूगल के सीईओ बनने से पहले पिचाई ने वेब ब्राउज़र गूगल क्रोम की स्थापना की थी.

दरअसल पिचाई जैसे भारतीय लोगों के बढ़ते दबदबे की सबसे बड़ी वजह यही है कि अमरीकी सिलिकॉन वैली में शीर्ष स्तर पर जो कार्य-संस्कृति है उसमें बड़ा बदलाव आया है.
भारतीयों का दबदबा

पहले के सीईओ काफी इगो वाले, कर्मचारियों के साथ सख्ती से पेश आने वाले और काफी हद तक निर्णायक फ़ैसले लेने वाले होते थे जो गुणवत्ता सुधारने के लिए, प्रतिस्पर्धी माहौल बनाने के लिए और कर्मचारियों की उत्पादकता बढ़ाने के लिए जान-बूझकर टकराव का रास्ता अपनाते थे.

अब प्रबंधन का अंदाज बदला है और टकराव के बदले, उसे नजरअंदाज़ करके बेहतर काम करने का रास्ता अपनाया जा रहा है. इस संस्कृति में भारतीय सीईओ एकदम फ़िट साबित हो रहे हैं.

यही वजह है कि माइक्रोसॉफ़्ट ने सत्या नडेला को अपना सीईओ बनाया है. स्टीव बॉमर के माइक्रोसॉफ़्ट छोड़ने का बाद उन्हें सीईओ बनाया गया.

इसके अलावा जापान के टेलीकॉम मल्टीनेशनल सॉफ़्टबैंक ने गूगल के निकेश अरोड़ा को अपना प्रेसीडेंट बनाया है.

एडोब को शांतानु नारायण चला रहे हैं.

आईटी की विशालकाय कंसल्टेंसी कंपनी कॉग्नीजेंट को फ्रांसिस्को डिसूज़ा लीड कर रहे हैं. कंप्यूटर मेमरी की बड़ी कंपनी सैनडिस्क के मुखिया संजय मेहरोत्रा भी भारतीय ही हैं.
स्टार्टअप्स में अव्वल

केवल टेक्नॉलाजी की बड़ी कंपनियों पर ही भारतीयों का दबदबा नहीं हैं. बल्कि शराब का कारोबार करने वाली सबसे बड़ी कंपनी डियाजियो के सीईओ इवान मेनेजेस भी भारतीय मूल के हैं.
मास्टरकार्ड के बॉस अजय बंगा भी भारतीय हैं. पेप्सी की सीईओ इंद्रा नूयी भी टॉप तक पहुंचने वाली भारतीयों में शामिल हैं.

सिलिकॉन वैली में भारतीय वर्क फोर्स की आबादी कुल मानव संसाधनों में 6 फ़ीसदी है लेकिन दूसरी ओर सिलिकॉन वैली के 15 फ़ीसदी स्टार्टअप्स के संस्थापक भारतीय हैं.

अमरीका के सिंगुलरिटी, स्टैनफोर्ड और ड्यूक यूनिवर्सिटी में पढ़ाने वाले प्रोफेसर विवेक वाधवा के एक अध्ययन के मुताबिक ब्रिटेन, चीन, ताइवान, जापान मिलकर जितने स्टार्ट अप शुरू करते हैं ये उससे भी अधिक है. इस अध्ययन के मुताबिक अमरीका की एक-तिहाई स्टार्टअप्स भारतीय लोगों ने शुरू किए हैं.

ऐसे में सवाल ये है कि भारतीय मूल के लोग अमरीका में इतने कामयाब क्यों हो रहे हैं?
कामयाबी की वजह

इसकी एक बड़ी वजह भारतीयों का अंग्रेजी ज्ञान है. ब्रिटिश उपनिवेशवाद के चलते भारत में उच्च शिक्षा अंग्रेजी माध्यम में ही उपलब्ध हैं, ऐसे भारतीय पेशेवरों को अलग से अंग्रेजी सीखने में मेहनत नहीं करनी होती है.

सिलिकॉन वैली में नेटवर्किंग संस्था चला रहे द इंडस इंटरप्रेन्योर्स के अध्यक्ष वेंकटेश शुक्ला इसकी एक दूसरी वजह भी मानते हैं.

वे कहते हैं, "इनमें से ज़्यादातर लोग भारत से तब आए थे जब वहां सीमित अवसर उपलब्ध थे. अमरीकी की वीज़ा नीतियों के कारण सिर्फ़ बेहतरीन प्रतिभाएं ही यहां आ सकीं. तो यहां भारत के सबसे प्रतिभाशाली लोग मौजूद हैं."

इसके अलावा कुछ और पहलू हैं जिसके चलते भारतीय अच्छा कर रहे हैं. इन्हीं पहलुओं में विविधता भी शामिल है.

वेंकटेश शुक्ला कहते हैं, "अगर आप भारत में पले-बढ़े हों तो विविधरंगी समाज आपके लिए कोई नई बात नहीं होती. सिलिकॉन वैली में ज़्यादा राजस्व और बेहतर उत्पाद की बात होती है, आप कैसा दिखते हैं और क्या बोलते हैं, इसका कोई मतलब नहीं होता."

कल्चरल डीएनए के लेखक गुरनेक बैंस कहते हैं, "ग्लोबलाइज़ेशन के मनोविज्ञान ने विविधता की समझ को भी बेहतर बनाया है. भारतीय विविध उत्पाद, विविध वास्तविकता और विविधरंगी नज़रिए को समझते हैं."

बैंस कहते हैं, "इसके चलते भारतीय तेज़ी से बदलती आईटी की दुनिया की चुनौतियों को संभालने में सक्षम हैं."

बेंस के मुताबिक अमरीकी सोचने का काम ज़्यादा करते हैं लेकिन योजना को अमल में लाने में भारतीय काफ़ी आगे हैं.

बैंस के फर्म वायएससी के 200 से ज़्यादा सीईओ के आकलन और विश्लेषण के दौरान ये बात भी सामने आई कि भारतीय कुछ हासिल करने के लिए प्रतिबद्ध होते हैं और उनमें बौद्धिकता का एक स्तर भी होता है.
ख़ामियां भी हैं मगर...

लेकिन इसका मतलब यह नहीं है हर कोई परफैक्ट ही होता है. तमाम गुणों के बावजूद भारतीयों में एक बड़ी खामी भी है. बैंस के अध्ययन के मुताबिक, "भारतीय टीम वर्क में सबसे कमज़ोर हैं." इस पहलू में अमरीकी और यूरोपीय सबसे बेहतर हैं.

हालांकि जो भारतीय लंबे समय से बाहर रहे हैं वो टीम वर्क के गुर भी सीख रहे हैं.

विवेक वाधवा कहते हैं, "भारत के बच्चे माइक्रोसॉफ्ट और गूगल का सबसे ज़्यादा इस्तेमाल करते हैं और वे इन कंपनियों के भारतीय सीईओ को भी देख रहे हैं. यह काफी प्रेरक है."

वाधवा के मुताबिक भारतीय पेशेवरों को अब अपनी क्षमता दिखाने के लिए अमरीका जाने की बाध्यता भी नहीं है क्योंकि भारत अब अमरीका और चीन के बाद दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है.

वाधवा कहते हैं, "अगले तीन से पांच साल के बीच भारत में करीब 50 करोड़ की आबादी स्मार्टफ़ोन का इस्तेमाल करने लगेगी. टेक क्रांति यहां दिखाई देगी. भारत से कई अरब डॉलर वाली कंपनियां निकलेंगी. अब अवसर भारत में मौजूद हैं."

Wednesday, 23 September 2015

डेंगू विषाणु कैसे फैलता है



डेंगू विषाणु कैसे फैलता है

वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि डेंगू विषाणु कैसे फैलता है और वे यह समझने के बहुत करीब हैं कि पहला डेंगू संक्रमण अक्सर हल्का क्यों होता है जबकि दूसरी बार संक्रमण प्राणघातक होता है।

अनुसंधानकर्ताओं का मानना है कि संक्रमण के जवाब में हमारे शरीर में प्रतिरक्षी पैदा होते हैं, लेकिन इस दौरान डेंगू के संक्रमण से जुड़े कुछ नयी तरह के विषाणु भी चुपचाप कोशिकाओं में प्रवेश कर जाते हैं, जिनसे हमारी प्रतिरोधक प्रणाली अनभिज्ञ बनी रहती है। बाद में मौका मिलने पर यह विषाणु सक्रिय हो जाते हैं और चूंकि प्रतिरोधक प्रणाली इनसे अनजान होती है इसलिए शरीर में इनके प्रतिरक्षी नहीं बन पाते और बीमारी प्राणघातक हो जाती है।


यहां यह महत्वपूर्ण है कि जब हम संक्रमित होते हैं तो हमारी प्रतिरोधक प्रणाली प्रतिरक्षी को संक्रमण की प्रकृति की पहचान करने के लिए भेजती है और प्रतिरक्षी संक्रमण की पहचान करने के बाद ही उसके प्रतिरोध का इंतजाम करते हैं। डेंगू के संक्रमण के विषाणुओं की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है और यह एक बार प्रतिरोधक प्रणाली के घेरे में आने के बाद एक दूसरे रूप में छिपकर कोशिकाओं तक पहुंचता है और प्रतिरोधक प्रणाली को खबर होने तक मरीज को प्राणघातक नुकसान पहुंचा देता है।

डेंगू के बारे में एक असामान्य पहलू यह है कि कुछ मामलों में जब कोई व्यक्ति दूसरी बार संक्रमित होता है तो संक्रमण से प्रतिरक्षा के बजाय बीमारी ज्यादा गंभीर हो सकती है। हालत यह है कि डेंगू एंटीजेनिक काटरेग्राफी कंसोर्टियम के अनुसंधानकर्ताओं ने डेंगू के जो 148 नमूने एकत्र किए, उनमें 47 तरह के विषाणु पाए गए। कहने को चिकित्सा जगत में डेंगू के चार प्रकार प्रचलन में हैं और इन चार प्रकारों में भी प्रत्येक डेंगू के विषाणु में काफी विभिन्नताएं हैं। इससे पता चलता है कि जब कोई व्यक्ति एक तरह के डेंगू से पीड़ित होता है तो उसी तरह के दूसरे विषाणु के खिलाफ प्रतिरोध में असमर्थ होता है। यह अध्ययन जरनल साईंस में प्रकाशित हुआ है।

Tuesday, 1 September 2015

World Hindi Conference Special (हिन्दी भारत की मातृभाषा है। आज हम आजाद हैं )

10th World Hindi Conference Bhopal (M.P.) 10,11,12 September 2015

हिन्दी भारत की मातृभाषा है। आज हम आजाद हैं लेकिन फिर भी हिंदी को आजाद भारत में वह स्थान नहीं मिला जो इसे मिलना चाहिए था। विश्व हिंदी सम्मेलन है इस मौके पर आइए एक लहर पैदा करें अपनी मातृभाषा को सम्मान दिलाने के लिए.!

14 सितम्बर 1949 को संविधान सभा ने निर्णय लिया कि हिंदी भारत की राजभाषा होगी, तभी से प्रत्येक वर्ष 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है। हिंदी भारत में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। लेकिन आज के दौर में हिंदी अपना अस्तित्व खोती जा रही है। आइए हम सब ये प्रण लें कि हम हिंदी बोलने में संकोच नहीं करेंगे और गर्व से हिंदी भाषा का उपयोग करेंगे..।



हिन्दी की विशेषताएँ एवं शक्ति



हिंदी भाषा के उज्ज्वल स्वरूप का ज्ञान कराने के लिए यह आवश्यक है कि उसकी गुणवत्ता, क्षमता, शिल्प-कौशल और सौंदर्य का सही-सही आकलन किया जाए। यदि ऐसा किया जा सके तो सहज ही सब की समझ में यह आ जाएगा कि -

1 संसार की उन्नत भाषाओं में हिंदी सबसे अधिक व्यवस्थित भाषा है।


2 वह सबसे अधिक सरल भाषा है।

3 वह सबसे अधिक लचीली भाषा है।

4 वह एक मात्र ऐसी भाषा है जिसके अधिकतर नियम अपवादविहीन है।

5 वह सच्चे अर्थों में विश्व भाषा बनने की पूर्ण अधिकारी है।

6 हिन्दी लिखने के लिये प्रयुक्त देवनागरी लिपि अत्यन्त वैज्ञानिक है।

7 हिन्दी को संस्कृत शब्दसंपदा एवं नवीन शब्द-रचना-सामर्थ्य विरासत में मिली है।
वह देशी भाषाओं एवं अपनी बोलियों आदि से शब्द लेने में संकोच नहीं करती। अंग्रेजी के मूल शब्द लगभग १०,००० हैं, जबकि हिन्दी के मूल शब्दों की संख्या ढाई लाख से भी अधिक है।

8 हिन्दी बोलने एवं समझने वाली जनता पचास करोड़ से भी अधिक है।

9 हिन्दी का साहित्य सभी दृष्टियों से समृद्ध है।

10 हिन्दी आम जनता से जुड़ी भाषा है तथा आम जनता हिन्दी से जुड़ी हुई है। हिन्दी कभी राजाश्रय की मोहताज नहीं रही।

11 भारत के स्वतंत्रता-संग्राम की वाहिका और वर्तमान में देशप्रेम का अमूर्त-वाहन

12 भारत की सम्पर्क भाषा

13 भारत की राजभाषा



                                                 हिन्दी की विशेषताएँ

हिंदी को देवनागरी लिपि में लिखा जाता है। इसे नागरी नाम से भी पुकारा जाता है। देवनागरी में 11 स्वर और 33 व्यंजन होते हैं और इसे बाएं से दायें और लिखा जाता है।


                                             हिन्दी की शैलियाँ

हिन्दी क्षेत्र तथा सीमावर्ती भाषाएँ


भाषाविदों के अनुसार हिन्दी के चार प्रमुख रूप या शैलियाँ हैं :


(१) उच्च हिन्दी - हिन्दी का मानकीकृत रूप, जिसकी लिपि देवनागरी है। इसमें संस्कृत भाषा के कई शब्द है, जिन्होंने फ़ारसी और अरबी के कई शब्दों की जगह ले ली है। इसे शुद्ध हिन्दी भी कहते हैं। आजकल इसमें अंग्रेज़ी के भी कई शब्द आ गये हैं (ख़ास तौर पर बोलचाल की भाषा में)। यह खड़ीबोली पर आधारित है, जो दिल्ली और उसके आस-पास के क्षेत्रों में बोली जाती थी।



(२) दक्खिनी - हिन्दी का वह रूप जो हैदराबाद और उसके आसपास की जगहों में बोला जाता है। इसमें फ़ारसी-अरबी के शब्द उर्दू की अपेक्षा कम होते हैं।



(३) रेख़्ता - उर्दू का वह रूप जो शायरी में प्रयुक्त होता है।



(४) उर्दू - हिन्दी का वह रूप जो देवनागरी लिपि के बजाय फ़ारसी-अरबी लिपि में लिखा जाता है। इसमें संस्कृत के शब्द कम होते हैं, और फ़ारसी-अरबी के शब्द अधिक। यह भी खड़ीबोली पर ही आधारित है।

हिन्दी और उर्दू दोनों को मिलाकर हिन्दुस्तानी भाषा कहा जाता है। हिन्दुस्तानी मानकीकृत हिन्दी और मानकीकृत उर्दू के बोलचाल की भाषा है। इसमें शुद्ध संस्कृत और शुद्ध फ़ारसी-अरबी दोनों के शब्द कम होते हैं और तद्भव शब्द अधिक। उच्च हिन्दी भारतीय संघ की राजभाषा है (अनुच्छेद ३४३, भारतीय संविधान)। यह इन भारतीय राज्यों की भी राजभाषा है : उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, उत्तरांचल, हिमाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली। इन राज्यों के अतिरिक्त महाराष्ट्र, गुजरात, पश्चिम बंगाल, पंजाब (भारत) और हिन्दी भाषी राज्यों से लगते अन्य राज्यों में भी हिन्दी बोलने वालों की अच्छी संख्या है। उर्दू पाकिस्तान की और भारतीय राज्य जम्मू और कश्मीर की राजभाषा है। यह लगभग सभी ऐसे राज्यों की सह-राजभाषा है; जिनकी मुख्य राजभाषा हिन्दी है।