Wednesday 1 January 2014

Veda वेद

Veda वेद



वेद प्राचीन भारत में रचित साहित्य हैं जो हिन्दुओं के प्राचीनतम और आधारभूत धर्मग्रन्थ भी हैं। भारतीय संस्कृति में सनातन धर्म के मूल और सब से प्राचीन ग्रन्थ हैं जिन्हें ईश्वर की वाणी समझा जाता है । वेदों को अपौरुषेय (जिसे कोई व्यक्ति न कर सकता हो, यानि ईश्वर कृत) माना जाता है तथा ब्रह्मा को इनका रचयिता माना जाता है। इन्हें श्रुति भी कहते हैं जिसका अर्थ है 'सुना हुआ' । अन्य हिन्दू ग्रंथों को स्मृति कहते हैं यानि मनुष्यों की बुद्धि या स्मृति पर आधारित । ये विश्व के उन प्राचीनतम धार्मिक ग्रंथों में हैं जिनके मन्त्र आज भी इस्तेमाल किये जाते हैं ।

'वेद' शब्द संस्कृत भाषा के "विद्" धातु से बना है, इस तरह वेद का शाब्दिक अर्थ विदित यानि ज्ञान के ग्रंथ हैं । आज चतुर्वेदों के रूप में ज्ञात इन ग्रंथों का विवरण इस प्रकार है -

ऋग्वेद -इसमें देवताओं का आह्वान करने के लिये मन्त्र हैं -- यही सर्वप्रथम वेद है (यह वेद मुख्यतः ऋषि मुनियों के लिये होता है)

सामवेद -इसमें यज्ञ में गाने के लिये संगीतमय मन्त्र हैं (यह वेद मुख्यतः गन्धर्व लोगो के लिये होता है)
यजुर्वेद - इसमें यज्ञ की असल प्रक्रिया के लिये गद्य मन्त्र हैं (यह वेद मुख्यतः क्षत्रियो के लिये होता है)
अथर्ववेद -इसमें जादू, चमत्कार, आरोग्य, यज्ञ के लिये मन्त्र हैं (यह वेद मुख्यतः व्यापारियो के लिये होता है)
वेद के असल मन्त्र भाग को संहिता कहते हैं । वैदिक साहित्य के अन्तर्गत उपर लिखे सभी वेदों के कई उपनिषद, आरण्यक तथा उपवेद आदि भी आते जिनका विवरण नीचे दिया गया है । इनकी भाषा संस्कृत है जिसे अपनी अलग पहचान के अनुसार वैदिक संस्कृत कहा जाता है - इन संस्कृत शब्दों के प्रयोग और अर्थ कालान्तर में बदल गए या लुप्त हो गए माने जाते हैं। ऐतिहासिक रूप से प्राचीन भारत और हिन्द-आर्य जाति के बारे में इनको एक अच्छा संदर्भ माना जाता है । संस्कृत भाषा के प्राचीन रूप को लेकर भी इनका साहित्यिक महत्व बना हुआ है ।


वेदों को समझना प्राचीन काल में भारतीय और बाद में विश्व भर में एक विवाद का विषय रहा है । प्राचीन काल में, भारत में ही, इसी विवेचना के अंतर के कारण कई मत बन गए थे । मध्ययुग में भी इसके भाष्य (अनुवाद और व्याख्या) को लेकर कई शास्त्रार्थ हुए । कई लोग इसमें वर्णित चरित्रों देव को पूज्य और मूर्ति रूपक आराध्य समझते हैं जबकि दयानन्द सरस्वती सहित अन्य कईयों का मत है कि इनमें वर्णित चरित्र (जैसे अग्नि, इंद्र आदि ) एकमात्र ईश्वर के ही रूप और नाम हैं । इनके अनुसार देव शब्द का अर्थ है ईश्वर की शक्ति (और नाम) ना कि मूर्ति-पूजनीय आराध्य रूप । मध्यकाल में रचित व्याख्याओं में सायण का रचा भाष्य बहुत मान्य है । प्राचीन काल के जैमिनी, व्यास इत्यादि ऋषियों को वेदों का अच्छा ज्ञाता माना जाता है । यूरोप के विद्वानों का वेदों के बारे में मत हिन्द-आर्य जाति के इतिहास की जिज्ञासा से प्रेरित रही है । ईरान और भारत में आर्य शब्द के अर्थ में थोड़ी भिन्नता पाई जाती है । जहाँ ये ईरान में ईरानी जाति का द्योतक है वहीं भारत में ये कुशल, शिक्षित और संपूर्ण पुरुष को जताता है । अठारहवीं सदी उपरांत यूरोपियनों के वेदों और उपनिषदों में रूचि आने के बाद भी इनके अर्थों पर विद्वानों में असहमति बनी रही है ।

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