Wednesday 24 December 2014

पंडित मदन मोहन मालवीय से जुड़े कुछ किस्से

पंडित मदन मोहन मालवीय का व्यक्तित्व जुदा किस्म का था। वे कोई संकल्प कर लेते थे तो पूरी जिद के साथ उसे पूरा करते थे। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना। पढ़िए इससे जुड़े कुछ किस्से

1. कुंभ के मेले में मिली चंदे की प्रेरणा-

पंडित मदन मोहन मालवीय एक बार त्रिवेणी संगम पर कुंभ के मेले में थे। वहां उन्होंने लोगों को बताया कि वे काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना करना चाहते हैं। यह सुनकर एक वृद्धा सामने आई। उसने अपने योगदान के रूप में पंडित मालवीय को एक पैसा दिया। वहीं से पंडित मालवीय को यह प्रेरणा मिली कि वे चंदा इकट्‌ठा कर विश्वविद्यालय बना सकते हैं।

2. निजाम की जूती लेकर चारमीनार पहुंच गए -

पंडित मालवीय द्वारा 4 फरवरी 1916 को काशी हिंदू विश्वविद्यालय की नींव रख दी गई थी। लेकिन इसे विकसित करने के मकसद से चंदा जुटाने के लिए पंडित मालवीय पूरे देश का दौरा कर रहे थे। वे हैदराबाद पहुंचे। निजाम से मिले। लेकिन निजाम ने उन्हें मदद करने से इनकार कर दिया। पंडित मालवीय हार मानने वाले नहीं थे। वे जिद पर अड़े रहे। इस पर निजाम ने कहा कि मेरे पास दान में देने के लिए सिर्फ अपनी जूती है। पंडित मालवीय राजी हो गए। महामना निजाम की जूती ले गए और हैदराबाद में चारमीनार के पास उसकी नीलामी लगा दी। निजाम की मां चारमीनार के पास से बंद बग्‍घी में गुजर रही थीं। भीड़ देखकर जब उन्होंने पूछा तो पता चला कि कोई जूती 4 लाख रुपए में नीलाम हुई है और वह जूती निजाम की है। उन्हें लगा कि बेटे की जूती नहीं इज्‍जत बीच शहर में नीलाम हो रही है। उन्होंने फौरन निजाम काे सूचना भिजवाई। निजाम ने पंडित मालवीय को बुलवाया और शर्मिंदा होकर बड़ा दान दिया।

एक और कहानी यह है कि निजाम के इनकार के बाद जब पंडित मालवीय महल से बाहर आए तो पास ही एक शव-यात्रा गुजर रही थी। जिस व्यक्ति का निधन हुआ था वह हैदराबाद का धनी सेठ था। शव-यात्रा के दौरान गरीबों को पैसा बांटा जा रहा था। पंडित मालवीय ने भी हाथ आगे बढ़ा दिया। एक व्यक्ति ने उनसे कहा कि लगता तो नहीं कि आपको इस पैसे की जरूरत है। इस पर वे बोले- भाई क्या करूं? तुम्हारे निजाम के पास तो मुझे देने के लिए कुछ नहीं है। खाली हाथ काशी लौटूंगा तो क्या कहूंगा कि निजाम ने कुछ नहीं दिया? ... इसके बाद निजाम ने उन्हें बुलवाया और मदद की। पेशावर से लेकर कन्‍याकुमारी तक महामना ने विश्वविद्यालय के लिए करीब एक करोड़ 64 लाख रुपए का चंदा इकट्‌ठा किया था।

3. दिनभर में जितनी जमीन नापी, उतनी दान में मिली

दान के साथ-साथ पंडित मालवीय को विश्वविद्यालय के लिए जमीन की भी दरकार थी। एक बार वे काशी नरेश के गंगा स्नान के समय घाट पर पहुंच गए। काशी नरेश डुबकियां लगाकर बाहर आए तो मालवीयजी ने जमीन मांग ली। नरेश ने कहा कि दान तो दूंगा लेकिन एक शर्त है कि सूरज ढलने तक लंबाई-चौड़ाई में जितनी जमीन पैदल चलकर नाप सकेगो, उतनी ही जमीन मिलेगी। पंडित मालवीय राजी हो गए। जितना हो सका, उतनी जमीन नाप ली और विश्वविद्यालय के लिए दान में ले ली।

4. जब 155 भारतीयों को फांसी से बचाया

मालवीयजी ने 1893 में कानून की पढ़ाई पूरी की। फिर इलाहाबाद हाईकोर्ट में वकालत करने लगे। 4 फरवरी 1922 को उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले स्थित चौरी चौरा थाने को दो हजार से ज्यादा गांव वालों ने घेर लिया। ब्रिटिश राज के दमन के विरोध में उन्होंने थाने में आग लगा दी। इसमें 24 सिपाही जलकर मर गए। इस मामले में अंग्रेज हुकूमत ने 170 भारतीयों को फांसी की सजा सुनाई। लेकिन 151 लोगों को पंडित मालवीय ने कानूनी मुकदमा जीतकर फांसी से बचा लिया।

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